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भगवान पार्श्वनाथ । उल्लेखनीय हैं। संजय और विजय यह दोनों चारण (आकाशगामी) जैन मुनि थे और यह भगवान महावीरके जन्म समय तक विद्यमान थे । इनको किसी प्रकारकी सैद्धांतिक संशय विद्यमान थीं; निसका समाधान इनको भगवान महावीरके दर्शन करते ही होगया था । श्वेतांबरोंके 'उत्तराध्ययनसूत्र' में भी एक संजय नामके मुनिका उल्लेख है परन्तु यह प्रगट नहीं कि वे भी यही मुनि थे । किंतु उधर बौद्ध शास्त्रों में भी एक संजय नामक मतप्रवर्तकका उल्लेख मिलता है और उनके शिष्य मौद्गलायन एवं सारीपुत्त वहां बतलाये गये हैं । मौद्गलायन जैन मुनि थे, यह बात श्री अमितगति आचार्यके निम्न श्लोकोंसे प्रगट है:
"रुष्टः श्रीवीरनाथस्य तपस्वी मौडिलायनः। शिष्यः श्रीपार्श्वनाथस्य विदधे बुद्धदर्शनम् ॥ ६८॥ शुद्धोदन सुतं बुद्धं परमात्मानमब्रवीत् । प्राणिनः कुर्वते किं न कोपर्वरिपराजिताः ॥ ६९॥"
इन श्लोकोंमें मौडिलायन अथवा मौद्गलायन नामक तपस्वीको श्री पार्श्वनाथनीकी शिष्यपरम्परामें बतलाया है। उसने महावीर भगवानसे रुष्ट होकर बुद्ध दर्शनको चलाया था और शुद्धोदनके पुत्र बुद्धको परमात्मा माना था यह भी कहा है ! यहांपर मौद्गलायनको बौद्धमतका प्रवर्तक इसीलिये लिखा है कि मौद्गलायन विशेष प्रख्यात और बौद्ध धर्म का उत्कट प्रचारक था । इस अपेक्षा मौद्गलायनको
१-उत्तरपुराण पृ० ६०८ और महावीरचरित पृ० २५५ । २उत्तराध्ययन ( S. B E. ) पृ. ८२। ३-महावग्ग १-२३-२४ । ४-धर्मपरीक्षा अध्याय १८ । ५-हिस्टारीकल ग्लीनिन्गास पृ० ४५ ।