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भगवान् के मुख्य शिष्य ।
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उल्लेख है । उपरांत वे० मुनि आत्मारामजीने स्वरचित 'अज्ञान - तिमिरभास्कर' में भगवान् पार्श्वनाथजीकी जो शिष्यपरंपरा दी है, वह इनसे भिन्न है । वह भगवान् के प्रमुख शिष्यका नाम आर्य समुद्र लिखते हैं और फिर श्री शुभदत्त गणधर, श्री स्वामी प्रभासूर्य, श्री हरिदत्त और श्री केशीस्वामीका उल्लेख क्रमशः करते हैं । इसतरह पर भगवान् पार्श्वनाथजीके मुख्य गणधरोंका ठीकसर परिचय पालेना आज कठिनसाध्य है और इस अवस्था में केवल यही निःसंशय स्पष्ट है कि भगवान् के मुख्य गणधर दश थे । इन सबकी अध्यक्षतामें उक्त मुनिगण विचरते थे । प्रमुख गणधर स्वयंभू मन:पर्ययज्ञानी थे और उपरान्त उनको केवलज्ञानकी प्राप्ति हुई थी ।
इनके अतिरिक्त श्री पार्श्वनाथजीकी शिष्यपरम्पराके विशेष प्रख्यात् मुनि हमको श्री पिहिताश्रव नामक मिलते हैं । दिगंबर जैन शास्त्रोंमें इनका विविध स्थानोंपर उल्लेख मिलता है । श्वेतांबर यति आत्मारामजी भी इनके विषय में कहते हैं कि 'यह स्वामी प्रभासूर्य के कई साधुओं में से एक थे । दिगम्बर जैन शास्त्रों में इनको भगवान् पार्श्वनाथजीकी शिष्यपरम्पराका एक साधु लिखा है और बतलाया है कि इनके एक बहुश्रुती शिष्य बुद्धिकीर्ति नामक थे, जिन्होंने भ्रष्ट होकर क्षणिकवादका प्रचार किया था । यह बुद्धिकीर्ति बौद्धधर्मके संस्थापक म० गौतमबुद्ध के अतिरिक्त और कोई अन्य व्यक्ति नहीं थे । म० बुद्धने स्वयं अपने मुख से एक स्थानपर जैनमुनि होना स्वीकार किया है। ऐसा मालूम होता है कि म०
१ कल्पसूत्र १६१ । २ जैनहितैषी भाग ७ अंक १२ पृ० २ । ३-जैन हितैषी भाग ७ अंक १२ पृ० २ । ४- दर्शनसार ६-१० । ५३ - सान्डर्स गौतमबुद्ध पृ० १५ ।