________________
३२३ ]
भगवान् पार्श्वनाथ ।
• मत करो, शून्य में गर्त होजाओ । परिणामवादके हाथों में कठपुतले • बने नाचते रहो । नियत कालमें तुम्हारा स्वयं ही निवटेरा होजायगा । किन्तु 'दर्शनसार' की उपरोक्त गाथाओं में 'मस्करि - पूरण' का एक साथ उल्लेख किया गया है, मानो यह दोनों एक ही व्यक्ति है अथवा इनका इतना घनिष्ट सम्बंध है, जो इन दोनों का उल्लेख एक साथ किया जा सके । यह बात दि० जैनाचार्य के इस कथन से ही केवल प्रगट नहीं है, किन्तु बौद्धोंके ' अङ्गुत्तरनिकाय ' नामक - ग्रन्थसे भी यही प्रमाणित है ।' वहां मक्खलिगोशालके छः अभिजाति सिद्धांत को पूर्णका बतलाया गया है और उसीमें अन्यत्र "उसको मक्ख लिगोशालका प्रायः शिष्य ही बतलाया है । इसी कारण आधुनिक विद्वान् पूर्णकाश्यप और मक्खलिगोशालके आपसी संबंध को स्वीकार करते हैं और इसलिये जैनाचार्यका उक्त प्रकार . इन दोनों व्यक्तियोंका एक साथ उल्लेख करना कुछ अनोखा नहीं है। हां ! श्वेतांबर जैनोंकी मान्यता इस विषय में इसके विरुद्ध है । वे मक्ख लिगोशालको स्वयं भगवान् महावीरका शिष्य बतलाते हैं और उनकी छद्मस्थ अवस्थामें वह भगवान महावीरके निकट दीक्षित हुआ था यह कहते हैं । किन्तु यह ठीक नहीं है । उनके अन्य ग्रन्थोंसे यह बाधित है, क्योंकि उनमें यह प्रगट किया गया है कि छद्मस्थावस्था में भगवान बोलते नहीं थे-मौन रहते थे। इस दशा में गोशालका भगवान् महावीरका शिष्य बतलाना गलत है और इस
..
१ - अंगुत्तरनिकाय भाग ३ पृ० ३८३ । २ - इन्डियन एन्टीक्वेरी भाग ४३ । ३ - भगवती सूत्र १५ - १६ । ४ - आचारांग सूत्र (S. B. E.) पृ० ८० ।
+