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[ ८ प्राचीन प्रतिमायें भी इसी रूपकी हैं किंवा विविध स्तोत्रोंमें इस घटनाका उल्लेख किया हुआ मिलता है। विक्रमकी दूसरी शताब्दिके दिगम्बर जैनाचार्य श्रीसमन्तभद्रस्वामी इस घटनाका उल्लेख निम्नप्रकार करते हैं:'बृहत्फणामण्डलमण्डपेन यं स्फुरत्तडिरिङ्गरुचोपसमिणाम् । जुगूह नागो धरणो धराधरं विरागसन्ध्यातडिदम्बुदो यथा॥'
इसी तरह श्री सिद्धसेन दिवाकर प्रणीत कल्याणमंदिर स्तोत्रमें भी यही उल्लेख मौजूद है; यथाः'यस्य स्वयं सुरगुरुगरिमाम्बुराशेः, स्तोत्रं सुविस्तृतमतिर्नविभु
विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठस्मयधूमकेतोस्तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये।। 'प्राग्भारसम्मृतनभांसि रजांसि रोषादुत्थापितानि कमठेन शठेन
यानि । छायापि तैस्तव न नाथ हता हताशो ग्रस्तस्त्वमीभिरयमेव परं
दुरात्मा ।। ३१॥' सोमचंद्रकी कठमहोदधि (श्वे०)में भी इस घटनाका उल्लेख है । अतएव इस घटनामें संशय करना वृथा है । जैन समाजमें भगवान् पार्श्वनाथके सम्बन्ध में कई पवित्रस्थान
तीर्थरूपमें माने जाते हैं । सम्मेदशिखर पार्श्वनाथजी सम्बन्धी तो निर्वाणस्थान होनेके कारण बहुप्रख्यात .. तीर्थस्थान। है परन्तु इसके अतिरिक्त और स्थान भी .
तीर्थरूपमें पूजे जाते हैं । बनारस गर्भ - जन्म और केवलज्ञान स्थानरूपमें प्रसिद्ध है। किन्तु दिगम्बर संप
दायमें न मालूम अहिच्छत्रको किस आधारसे केवलज्ञान स्थान माना