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भगवान् पार्श्वनाथ |
भावके प्रतिकूल और उसको मेटनेवाला नहीं होता है । श्वेताम्बरोंके ' उत्तराध्ययन सूत्र' में ऐसा ही वर्णन हमें ' केशी और गौतम ' के सम्वादरूपमें मिलता है। केशी श्रीपार्श्वनाथजीकी शिष्य परम्पराके एक आचार्य हैं और गौतम भगवान महावीरजीके प्रवान गणधर हैं। इन दोनों महानुभावका संघनहित आकर श्रावस्तीके उद्यानों में ठहरना और फिर परस्पर समाधान करना बताया गया है | वहां लिखा है :
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"पुच्छ भन्ते जहिच्छन्ते केसिं गोयमन्त्री | तओ केसी अणुन्नाए गोयमं इणमब्बवी ।। २२ ॥ चाउज्जामो य जो धम्मो जो इमो पंचसिक्खिओ । देसिओ वद्धमाणे पासेण य महामुनी || २३ ॥ एगज्जपत्र नाणं विसेसे किं नु कारणं । धम्मे दुबि मेहाविक विप्पञ्चओ न ते ।। २४ ।। तओ केसिं बुवन्तं तु गोयमो इणमब्बवी । पन समिक्ख धम्मतत्तं तत्तविणिच्छियं ॥ २५ ॥ पुरिमा उज्जुजडा उ वंकजडा य पच्छिमा । -मज्ज्ञिमा उज्जुपन्ना उतेण धम्मे दुहा कए || २६ ॥
रमाणां दुव्विसोज्झोउ चरिमाणं दुरणुपालओ । कृप्पो मज्झिमाणं तु सुविसोझो सुपालय ।। २७ ॥ साहु गोयम पना ते छिन्नो मे संसओ इमो ।"
इनका भाव यही है कि ऋषि केशीने गौतमगणधर से पूछा था कि यह क्या कारण है जब कि दोनों तीर्थक्करोंके धर्म एक ही उद्देश्यके लिए हैं तत्र एक में चार व्रत और एक में पांच बताये गये