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भगवानका धर्मोपदेश। [२६५ तसल्ली नहीं हुई और वह चटसे पेड़ार चढ़ गये और उसपरसे बीन२ कर आमोंसे अपनी झोली भरने लगे। इनके साथी इनसे भी एक कदम अगाड़ी बढ़ गये । उनने गुंचेदार टहनियों को तोड़कर अपनी हाथ भरकी जीभकी लालसा मिटाना चाही । किन्तु इन महाशयके पड़ोसी इनसे भी बड़े चढ़े निकले । उन्होंने गुद्दों को काटकर अपनी हवश पूरी करना चाही। परन्तु उनके भी गुरु इनके हमजोली निकल पड़े । उनने जड़से ही पेड़को काट लेनेकी ठहराई । इसतरह इस उदाहरणमें आये हुए व्यक्तियों के व्यवहारसे लेश्याओंका स्वरूप स्पष्ट होनाता है । पहले मित्र साहबके परिणाम शुक्ललेश्यारूप थे । वह प्राकृत रूपमें संतुष्ट थे । उनके आकांक्षाका प्रायः अभाव था। दूसरे पेड़को हिलानेवाले महाशय पद्म लेश्याकी कोटिमें आ जाते हैं । इनकी तृष्णा मन्द रूपमें भड़कती कही जासक्ती है । पेड़पर चढ़कर आम तोड़नेवाले महानुभावके भाव पीतलेश्या रूप थे । यहांतक भी गनीमत है । यह परिणाम भी ज्यादा बुरा नहीं है । इसमें असंतोषकी मात्रा सीमाको उल्लंघन नहीं कर गई है । किन्तु शेषके तीनों मनुष्योंके परिणाम निःकृष्ट हैं । वह सीमाको उल्लंघ गये हैं । उनके क्रमसे कापोत, नील और कृष्ण लेश्याका सद्भाव समझना चाहिये । इस प्रकारसे ये लेश्यायें मनुष्यको उसकी दैनिक प्रवृत्तिका स्पष्ट दर्शन करा देती हैं । पीतलेश्यारूप यदि उसका लौकिक व्यवहार है तो भी गनीमत है । वहांतक वह मनुष्य अवश्य रहेगा और अवश्य ही मौका पाकर पद्म और शुक्ललेश्या रूप भी अपनी दैनिकचर्या बना सकेगा । परन्तु जो व्यक्ति कापोत लेश्यामें जा फंसा है, उसके