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. ज्ञानप्राप्ति और धर्म प्रचार। [२३७ हालतमें उनका अन्य प्रदेशोंको अछूता छोड़ देना ठीक ही है । इसतरह पर जहां२ भगवान पार्श्वनाथका पवित्र विहार हुआ था, वहां वहां का वर्णन जैनशास्त्रोंमें मिलता है। इस पवित्र विहारमें अव्याबाध सुख को दिलानेवाले धर्मका बहु प्रचार हुआ था । भव्यरूपी चातकों के लिये दुर्लभ धर्मामृतकी अपूर्व वर्षा हुई थी। जो भी भगवानके समवशरणमें पहुंच गया वह कृतकृत्य होगया । यही नहीं, जिस ओरसे भगवानका विहार होगया उस ओर कोसोंमें सुकाल फैल गया था-ग्रामीण लोग आनन्दमग्न होगए थे। दुर्भिक्षका वहां पता ही नहीं मिलता था। साक्षात् परमात्मा तीर्थकर भगवानकी पुण्य प्रकृतिसे सबको सब ठौर सुख ही सुख नजर पड़ता था। इस तरह पर भगवान का सर्वत्र सुखकारी धर्मप्रचार और विहार हुआ था। 'बहुदेशन माही प्रभु विहराही भवि जीवन संबोधि दये। मिथ्यामत भारी तिमिर विदारी जिनमत जारी करत भये॥ कछु इच्छा नारी विनि डगधारी होत विहारी परमगुरू । जिन प्राणिन केरा तरव सवेरा तितै नाथ मग होत शुरू। वामाके प्यारे जग उजियारे मनसों थारे पद परसों। जिन परसे सारे पातक जारे और सवारे शिव दरसों॥"