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भगवानका धर्मोपदेश! [२३९ बुद्ध और मक्खलिगोशाल जैसे उत्कट प्रचारकोंपर पड़ा था. वैसे ही भगवान पार्श्वनाथके प्रभावसे उनके समयके धार्मिक वातावरणमें एक क्रांति खड़ी होगई थी, यह हम अगाड़ी देखेंगे । यहां पर तो यह देखना मात्र इष्ट है कि भगवानने अपने धर्मोपदेशमें कहा क्या था ?
जैन मान्यता है कि तीन काल और तीनलोक में जबजब जो जो तीर्थकर होंगे, उनके धर्मो प्रदेश भी वैसे ही एक समान होंगे। उनमें एक दूसरेसे किञ्चित् भी अन्तर नहीं पड़ सक्ता है । यह एक बड़ा ही अटपटा और अनोखा सा दावा है, परन्तु ध्यान देनेसे इसकी सार्थकता प्रकट होजाती है । बेशक यह जीको नहीं लगता कि हर समयके हर तीर्थंकरका धर्मोपदेश एक ही प्रकारका और एक ही ढंगका हो। यदि उनका धर्मोपदेश एक ही प्रकार और एक ही ढंगका हरसमय होता मान लिया जाय, तो फिर विविध तीर्थंकरोंका कालान्तरमें अवतीर्ण होना कुछ महत्वशाली रहता भी नजर नहीं पड़ता, क्योंकि समयकी परिस्थिति हर समय एकसी नहीं रहती और एक अमुक प्रकारकी परिस्थितिके अनुकूल कहा गया उपदेश एक अन्य प्रकारकी परिस्थितिके लिये समुचित नहीं रह सक्ता और यह स्पष्ट है कि प्रत्येक क्षेत्र और प्रत्येक काल में संसारी जीवोंकी दशा कभी भी एक समान नहीं रहती है । द्रव्य, क्षेत्र, काल, भावके अनुसार उनकी दशा पलटती रहती है। चौथे कालके जीवोंसे आनकलके जीवोंकी आयु, काय, बुद्धि, संह. नन आदि सब बातें बहुत ही अल्प हैं और अबसे अगाडीके जीवोंकी हालत इससे भी बदतर होगी, यह जैन शास्त्रों का कथन है। स्वयं