________________
ज्ञानप्राप्ति और धर्म प्रचार ।
[ २३३ - ग्राम है।' इन प्रदेशों में भगवान् पार्श्वनाथकी मान्यता और मूर्तियां भी बहु संख्या में प्राचीन मिलती हैं। कलिंग देशके राजा खारवेल द्वारा निर्मित्त हाथी गुफा आदिमें इन तीर्थंकर भगवान्की सम्पूर्ण जीवनी के चित्र दीवालोंपर अंकित हैं। उन्होंने पौंड़, ताम्रलिप्त आदिमें विशेष रीतिसे अपना विहार किया था। आज भी रांची, -मानभूम आदि जिलोंमें हजारों मनुष्य केवल भगवान् पार्श्वनाथके - नामकी उपासना करते हैं, उनको अपना इष्टदेव मानते हैं - परन्तु उनके धर्म के विषय में और अधिक आज वे कुछ भी नहीं जानते; यद्यपि वे अब भी सराक ( श्रावक ) नामसे प्रख्यात् हैं । इससे स्पष्ट है कि भगवानका विहार बंगाल में भी हुआ था और ऊपर शाक देशमें उनका पहुंचना लिखा ही है, जो नेपालकी तराईका शाक्य प्रदेश ही हो सक्ता है । स्वयं शाक्यवंशी राजा शुद्धोदन के गृहमें जैनधर्मकी मान्यता थी, ऐसा बौद्ध ग्रन्थोंके कथनसे प्रमाणित होता है। इस अवस्था में भगवान् पार्श्वनाथजीका ही नेपालमें धर्म प्रचार करना संभवित होता है, जिसका उल्लेख पूर्वोक्त प्रकार नेपाके इतिहास में किया गया है । शाक्य भूमिके अतिरिक्त किसी अन्य देशका नाम 'शाक' भारतमें तो देखनेको मिलता नहीं है । हां ! इन्डो-ग्रीक राजाओंकी राजधानी शाकल अथवा साकल ( आजकलका स्यालकोट ) अवश्य शाकसे सादृश्यता रखती है और वहां प्रख्यात् राजा मिलिन्द ( Menander) अधिकांश यवनोंके
१–आर्केलॉजिकल सर्वे ऑफ मयूरभंज सन् १९११ और बंगाल प्राचीन जैनस्मार्क पृ० ७९ । २ - बंगाल, ओड़ीसा, विहारके प्राचीन जैनस्मार्क पृ० ८९-९० । ३-पूर्व० पृ० ४२ और १४०-१४७ १० ४१३ ॥ ४ - भगवान महावीर और म० बुद्ध पृ० ३७ ।