________________
ज्ञानप्राप्ति और धर्म प्रचार । [२२९ कुरुकौशलकाशी मुह्यावंती पुंड्र मालवान् । अंग बंग कलिंगाख्य पंचालमगधाभिधान ! १८ ।। विदर्भभद्रदेशाख्य दर्शर्णोदीन बहून्जिनः । विहारमहाभूत्या सन्मार्ग देशिनोद्यतः ॥ १९ ॥२३॥
अर्थात्-जिनेन्द्ररूपी भानुके उदय होनेसे साधु मुनीश्वरोंका संचार होगया और कुलिंगी जटिल आदि पाखंड रूप अंधकारका उसी तरह नाश होगया जैसे चोरोंका होजाता है। फिर भगवान्का पवित्र विहार कुरु, कौशल, काशी, अवंती, पुंडू, मालवा, अंग, बंग, कलिंग, पंचाल, मगध, विदर्भ, भद्र, दर्शार्ण आदि देशोंमें महाविभूतिके साथ होगया था । यह सारे ही देश आजकल इसी भारतके अन्तर्गत मिल जाते हैं । इसी तरह एक अन्य आचार्य भगवान्के विहारमें आकर पवित्र हुये देशोंका उल्लेख एक दूसरे रूपमें यूं करते हैं:
'तत्वभेदप्रदानेन श्रीमत्पार्श्वप्रभुर्महान् । जनान् कौशलदेशीयान कुशलान् संव्यध्यद्भश ॥७६ ॥ भिंदन मिथ्यातमोगाढं दिव्यध्वनिप्रदीपकैः। काशीय देशीयकोकान स चक्रे संयमतत्परान ॥७७॥ श्रीमन्मालवदेशीय भव्यलोकसुचातकान । देशनारसधाराभिः प्रीणयाभास तीर्थराट् ॥७८॥ अवतीयान् जनान् सर्वान मिथ्यात्वानलतापितान् । रयानिर्वापयामास पार्श्वचंद्रामृतैः ॥ ७९ ॥ गौर्जराणां जनानां हि पार्श्वसम्राट् जितेंद्रियः। मिथ्यात्वं जर्जरंचक्रे सद्वचः शस्त्रघातनैः॥ ८०॥