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ग्रंथोंमें सेवर है । इस ग्रंथ में भगवान के दीक्षावृक्षका भी नाम नहीं लिखा हुआ है । हरिवंशपुराण में उसका नाम धव है । (ट० ६६७) सकलकीर्तिमी और भूवरदासनीने उसे बड़का पेड़ बतकाया है। उत्तरपुराण और चन्द्रकीर्ति कृत चरित्रमें केवल शिलाका उल्लेख है । (चंद्रकांत शिलातले ) । हरिवंश में दीक्षावन अश्ववनके. स्थानपर मनोरम वन है । तीनसौ राजाओंके साथ दीक्षित होना भी वादिराजजी और गुणभद्राचार्यजीने नहीं लिखा है । शेष सबने लिखा है । जिनसेनाचार्यने उनकी संख्या ६०६ बताई है (८७५-७६) पार्श्वभगवान पारणाके लिए गुल्मखेटपुर में गए थे, यह बात उत्तरपुराण (७३ | १३२) वादिराजसूरिचरित (११।४५ ) सकलकीर्तिपुराण, चंद्रकीर्तिचरित् (१२/१० ) और भूधरदासनी (८/३) ने स्वीकार की है; किन्तु हरिवंगपुराणमें यह काम्याकृतनगर बताया गया है ( पृ० १६९) दातारका नाम सकलकीर्तिजी और भूवरदासजीने ब्रह्मदत्त लिखा है; परन्तु वादिराजजीने घर्मो - दय (११।४ ), और गुणभद्राचार्यने (७३|१३३), जिनसेनाचार्य (g० १६९) और चंद्रकीर्तिजी (१२।१३) ने धन्य राजा लिखा है । केवलज्ञानकी तिथि अन्य ग्रन्थोंमें चैत्र कृष्णा चतुर्दशी लिखी है; ; परन्तु हरिवंशपुराण में चैत्र वदी चौथको दोपहरके पहले केवलज्ञान हुआ लिखा है । ( ० १६९) उत्तरपुराण सकलकीर्तिकृत पुराण, चन्द्रकी र्तिकृत चरित और भूधरदास प्रथितपुराणमें १६००० साधुओंकी संख्या इस तरह बताई हैं:
(१) दश गणधर, (२) ३५० पूर्वधारी (३) १०९०० शिक्षक साधु, (४) १४०० अवधिज्ञानी, (६) १००० केवलज्ञानी,