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• (९/१ - ३) उनने मंत्रीकी प्रेरणाका उल्लेख नहीं किया है और न मुनिवरका नाम बताया है । किन्तु उत्तरपुराण (७३।४४-४५), सकलकीर्तिजी (७१३९-४१), चंद्रकीर्ति ( ६४५ - १० ) और भूधरदासजी (४।१८ - २४ ) ने स्वामिहित मंत्रीकी प्रेरणा से आनंद • राजाको जिनयज्ञ रचते और विपुलमती मुनिराजको आते लिखा है । उत्तरपुराण (७३|१८-६०) सकलकीर्ति और भूधरदासजी (४ |६०) ने राजा आनंद के समय से सूर्य पूजाका प्रचार हुआ लिखा है। किंतु वादिराजसूरिजी के ग्रन्थमें (स०९ ) और चंद्रकीर्तिजीके चरित (६/८१ - ८८ ) में ऐसा कोई उल्लेख नहीं है । वादिराजजीने राजा आनंदको सफेद बाल देखकर निधिगुप्त मुनिराजके समीप दीक्षा लेते लिखा है । ( ९/३४-३८) किंतु चंद्रकीर्तिजीने यद्यपि सफेद बाल देखनेकी बात लिखी है । परन्तु मुनिका नाम सागरदत्त लिखा है । ( ६ ९३ व १२४ ) और सकलकीर्तिजीने मुनिका नाम समुद्रदत्त बतलाया है ( ८ (२६), यही नाम उत्तरपुराण में भी है । (७३ | ६१) भूधरदासजीने सागरदत्त लिखा है । नाम अगाड़ी वादिराजसूरिजीने भगवान के पिताका नाम विश्वसेन (९/६९) और माता ब्रह्मदत्ता (९/७८) बताई हैं; परन्तु उनने इनके कुलवंशका उल्लेख नहीं किया है । उतरपुराण में राजा-रानीका नाम क्रमशः विश्वसेन और ब्रह्मा देवी (७३/७४) लिखा है, तथा उनका वंश उग्र (७३|९५) और गोत्र कश्यप (७३/७४) बताया है । सकलकीर्तिजी, चंद्रकीर्तिनी और भूधरदासजीने काश्यपगोत्र और वंश इक्ष्वाकू लिखा है । परन्तु भूवरदासजीके अतिरिक्त उनने राजाका नाम विश्वसेन बताया है । भूरदास जी उन्हें अश्वसेन