________________
[६४] बतलाते हैं। (५।६५) हरिवंशपुराणमें भी यही नाम है (ए०५६७) सकलकीर्तिनी रानीका नाम ब्राह्मी (१०४१) और चंद्रकीर्तिनी ब्रह्मा ( ८1५१ ) बतलाते हैं। किंतु हरिवंशपुराणमें उनका नाम वर्मा लिखा है । (ए० ५६७) भूघरदासजी उन्हें वामादेवीके नामसे लिखते हैं.। (५/७१) पाश्र्वाभ्युदय काव्यमें उनकः उग्रवंश लिखा है (श्लो० २) किन्तु आदिपुराण (अ. १६)में आदिवंश इक्ष्वाक्से ही शेष वंशोंकी उत्पत्ति लिखी है। शायद इसी कारण भगवानको किन्हीं आचार्योने उग्रवंशी और किन्हींने इक्ष्वाक्वंशी लिखा है । वादिराजसुरिजीने भगवानकी गर्भ तिथि नहीं लिख' है । शेष सब ग्रंथोंमें वैशाख कृष्ण द्वितीया विशाखा नक्षत्र (निशात्यये) लिखी हुई है । वादिराजसूरिजी जन्मादि किसी भी तिथिका उल्लेख नहीं करते हैं; किन्तु और सब jथ उनका उल्लेख करते हैं | वादिराजमूरिजी 'भगवानने आठ वर्षकी अवस्थामें अणुव्रत धारण किये थे। इसका भी उल्लेख नहीं करते हैं। उत्तरपुराण और हरिवंशपुराणमें भी यह उल्लेख नहीं है । वादिराजनीने भगवानके पिता द्वारा उनसे विवाह करनेके लिये अनुरोध किया था, उसका उल्लेख महीपाल साधुसे मिलनेका बाद किया है और उससे ही उन्हें वैराग्यकी प्राप्ति होते लिखी है (११।१-१४) परन्तु उभमें अयोध्याके राजा जयसेन द्वारा भेट भेननेका निक नहीं है । उत्तर पुगणमें ( ७३ १२० ) जयसेनका उल्लेख है । परन्तु उसमें भी राजा विश्वसेनका भगवानसे विवाह करने के लिए कहनेका निकर नहीं है। शेष हरिवंशपुराणको छोड़कर सब ग्रन्थोंमें यह उल्लेख है। वादिराजसुरिके चरित्र में ज्योतिषीदेवका नाम भृतानंद और शेष