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१३५० - १३६०) कल्पसूत्रमें आर्यदत्तकी संरक्षतामें १६००० श्रमण, पुष्पकला आर्थिकाकी प्रमुखता में ३८००० आर्यिकायें, १६४००० श्रावक और ३२७००० श्राविकायें बतलाये हैं । भावदेवसू र ग्रन्थमें यह संख्या इस रूपमें देखनेको नहीं मिली है । शत्रुञ्जय माहात्म्य (१४१ - ९७ ) में भी पूर्वभवों का वर्णन नहीं है । उसमें प्राप्त रूप से भगवानका चरित्र प्रारम्भ किया गया है। इसमें कम उल्लेख संक्षेप में है । (१४-४२. दशभवारतिः कठासुरः), विवाहका उल्लेख इसमें भी है; परन्तु इसमें पार्श्वनाथनीकी पत्नी प्रभावतीको प्रसेनजितुके स्थान पर नरवर्मनकी पुत्री लिखा है । प्रसेनजित नरवर्मनका पुत्र । भावदेवसूरिजीने प्रभावतीको प्रसेनजितकी पुत्री लिखा है ( १ / १४५ .... ) किन्तु बौद्धादि ग्रन्थोंसे प्रगट है कि प्रसेनजित म बुद्धके समकालीन थे ।' इस अवस्थामें न वह और न उनके पिना भगवान पार्श्वनाथजी के समय में पहुंच सक्ते हैं । इस कारण उनका यह कथन निःमार प्रतीत होता है कि भगवान् पार्श्वनाथनका विवाह हुआ था । उनके कल्पसूत्रादि प्राचीन ग्रंथों में इसका कोई उल्लेख नहीं है, यह हम पहले ही कह चुके हैं । किंतु इनके उपयन्तके ग्रन्थोंमें पूर्वभव वर्णन आदिके विशेष उल्लेख संभव्रतः दिगम्बर सम्पदायक ग्रन्थोंके आधारपर इस ढंगसे लिखे गए होंगे कि वह स्वतंत्र और यथार्थ प्रतीत हों । अतएव निम्न में दि० और श्वे० ग्रन्थोंमें जो परस्पर भेद है उसको देख लेना भी आदश्यक है ।
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० के भावदेवसूरिकृत पार्श्वचरितसे ही हम इस प्रभेदका १- क्षत्रिय क्लेन्स इन बुद्धिस्ट इन्डिया, पृ० १२८ - १२९ ।