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चक्रवर्ती राजा हुये बताये गये हैं । पद्मा हरणकी कथा बहुत कुछ संस्कृतके शकुन्तला नाटककी वार्तासे मिलती जुलती है । दिगम्बर शास्त्रों में यह कुछ भी उल्लेख नहीं है। इसके स्थानपर उनमें आनन्द राजाको पूजा करते और उनके सूर्यविमानस्थ मंदिरोंकी पूजा करने से 'सूर्य पूजा' का प्रारम्भ होता लिखा है | आनन्द मुनि होनेपर कमठके जीव शेरने उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी थी। वे भौतिक शरीर छोड़कर आनत स्वर्गमें देव हुये । श्वे ० शास्त्र स्वर्णबाहुके मुनि होने और शेर द्वारा मारे जानेको तो स्वीकार करते हैं, परन्तु उन्हें महाप्रभा विमान में देव होते लिखते हैं। यहांसे चयकर यह जीव इक्ष्वाकुवंशी राजा अश्वसेन और रानी वामाके यहां बनारस में श्री पार्श्वनामक राजकुमार होते हैं, यह बात दोनों संप्रदाय के शास्त्र स्वीकार करते हैं । किन्तु श्वे० शास्त्र में जो उनका पार्श्व नाम इस कारण पड़ा बताया है कि उनकी माता ने अपने 'पार्श्व' (बगल में एक सर्पको देखा था, दिगंबर शास्त्रोंके कथनसे प्रतिकूल है। उनमें इन्द्रने भगवानका चमकता हुआ पार्श्व देखकर उनका नाम पात्र रक्खा था, यह लिखा है । दि० शास्त्र उनके विवाह की वार्तासे भी सहमत नहीं हैं । श्वे० शास्त्र में कमठके जीवको नर्क से निकलकर रोर नामक ब्राह्मणका कठ नामका पुत्र होते बतलाया है । पर दिगंबर शास्त्र कहते हैं कि कमठका जीव नर्क में से निकलकर संसार में किंचित रुलकर महीपालपुरका राजा महीपाल हुआ, जो भगवान पार्श्वनाथका इस भवमें नाना था । इसप्रकार पार्श्वजीके अंतिम संसारी जीवनमें कमठसे उनका सम्बंध पुनः उनके प्रथम भव जैसा होजाता है । आखिर में दोनों
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