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संप्रदाय के शास्त्र कमठ जीवको पंचाग्नि तपता हुआ साधु और उससे भगवान पार्श्वका समागम लिखते हैं । इ० शास्त्र सर्पको पाताल लोक में धारण नामक राजा और कमठ जीवको मेघमालिन असुर होता लिखते हैं । दि० शास्त्र सर्पको घरणेन्द्र और कमठ जीवको संवर नामक ज्योतिषीदेव हुआ बतलाते हैं । दोनों संप्रदाय भगवानको तीस वर्ष की अवस्था में दीक्षा धारण करते प्रगट करते हैं; किंतु खे० शास्त्रोंमें दीक्षावृक्ष अशोक है और दि० शास्त्रों में वह बड़का पेड़ बताया गया है । उसी तरह उनके दीक्षा लेनेका कारण भी दोनों आम्नायोंके ग्रंथों में विभिन्न है । दिगम्बर शास्त्र छद्मस्थावस्थामें उन्हें मौन धारण किए हुए बताते हैं; परंतु भावदेवसूरिके चरितमें उन्हें तब भी उपदेश देते लिखा है । यह बात उनके आचारांगसूत्र के कथनसे भी बाधित है; जिसमें तीर्थंकर भगवानको इस दशा में मौनवृत गृहण किए हुए विचरते लिखा है । उपरांत श्वेताम्बराचार्य असुरद्वारा भगवान पर उपसर्ग हुआ बतलाते हैं और उसके अन्तमें उसे भगवानकी शरण में आया कहते हैं । किन्तु दि० शास्त्र समोशरण में उसे सम्यक्त्तत्वकी प्राप्ति हुई बतलाते हैं । उपसर्ग होनेके बाद वह काशी पहुंचे थे, यह श्वे. कहते हैं । परन्तु दिगंबर शास्त्रों में यह घटना स्वयं काशी में हुई बताई गई है । मोक्ष पानेपर भगवान् के निर्वाण स्थान पर देवेन्द्र ने रत्नजटित स्तूप बनाया था, यह भी श्वे ० शास्त्र कहते हैं । दिगंबर ग्रन्थों में शायद कोई ऐसा उल्लेख नहीं है । कल्पसूत्र में गर्मतिथि चैत्रकृष्णा ४ समय अर्धरात्रि लिखी है । दि• शास्त्र में यह वैशाखकृष्ण २ समय अर्धरात्रि बताई गई है । हां,