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[७.] तपस्या करता रहा। श्वेतांबराचार्य अगाड़ी वजनाभिको जन्मसे मिथ्यात्वी और साधु लोकचंद्र द्वारा सम्यक्त्वी लाभ करते बतलाते हैं। वह उसके पुत्रका नाम शक्रायुध कहते हैं। दिगम्वर शास्त्र उनको जन्मसे जैनी बतलाते और उनके पुत्रका नामोल्लेख नहीं करते हैं । वजनाभिका जन्मस्थान श्वेतांबर शुभंकरा नगरी बतलाते और उनकी माताका नाम लक्ष्मीवती और स्त्री विजया बताते हैं। दि० शास्त्रोंमें जन्मस्थान अपरविदेहके पद्मदेशका अश्वपुर और उनकी माता व पत्नीके नाम क्रमशः विजया और शुभद्रा प्रगट करते हैं। श्वेताम्बर शास्त्र कुरंगक भीलको ज्वलन पर्वतमें रहते बताते हैं। दिगम्बर शास्त्रोंमें ज्वलन पर्वतका कोई उल्लेख नहीं है। वजनाभिकी कुरंग भीलके हाथसे मृत्यु हुई बताकर श्वे. शास्त्र उसे ललितांग स्वगंमें देव होते और वहांसे चयकर सुरपुरके राजा वजबाहुकी पत्नी सुदर्शनाके गर्भ में आते लिखते हैं। इनकी कोखसे, जन्म पाकर वह उसे स्वर्णबाहु नामक चक्रवर्ती राजा होते लिखते हैं किंतु दिगम्बर शास्त्रोंमें वजनाभिको चक्रवर्ती बताया गया है। इस भवमें तो मरुभुतिका जीव मध्यम ग्रैवेविकसे चयकर आनन्द नामक महामण्डलीक राजा हुआ था, यह दिगंबर शास्त्र कहते हैं । किंतु दोनों सम्प्रदायके ग्रंथोंमें इनके पिताका नाम वज्रबाहु ही है । दिगम्बर शास्त्र इनको अयोध्याका राजा बताते हैं और इनकी रानीका नाम प्रभाकरी लिखते हैं। श्वे. शास्त्र यह भी कहते हैं कि स्वर्णबाहुको एक दफे उनका घोड़ा ले भागा और वह साधुओंके एक आश्रममें पहुंचे। वहां रत्नपुरके विद्याधर राजाकी कन्या पद्मापर वह आसक्त हुये और उसे ले भागे । इस पद्माके सम्बंधियोंकी सहायतासे वह