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(६) १००० विक्रियाधारी, (७) ७५० मनःपर्ययज्ञानी, (८) ६०० वादी। - हरिवंशपुराणमें इनकी संख्या निम्न प्रकार लिखी है और वादिराजमूरिने लिखी नहीं है:
(१) १० गणधर, (२) ३५० वादी, (३) १०९०. शिक्षक, (४।१४०० अवधिज्ञानी, (५) १००० केवलज्ञानी, (६) १००० विक्रियाधारी, (७, ७५० विपुलमती : ८) ६०० वादी। हरिवंशपुराणमें आर्यिका ३८०००, श्रावक एक लाख और तीन लाख श्राविकायें लिखी हैं। उत्तरपुराण, सकलकीर्तिकृत पुराण, चन्द्रकीर्तिकृत चरित और भूधरदासनी प्रणीत पुराणमें श्रावक और श्राविकाओं की संख्या हरिवंशपुराणके समान लिखी हैं; परन्तु आर्यिकाओं की संख्या भूघरदामजीके अतिरिक्त सबने ३६००० लिखी है । भूधरदासनीने २६००० बतलाई है। उत्तर पुराण, सकलकीर्ति, चन्द्रकीर्ति और भूधरदासनीके ग्रन्थोंमें भगवानको मोक्ष लाभ प्रतिमायोगसे प्रातःकाल हुआ लिखा है; किन्तु हरिवंशपुराणमें कायोत्सर्गरूपसे सायंकालको हुआ बतलाया है। भूधरदासनी ३६ मुनीश्वरों के साथ मोक्ष गये बतलाते हैं; जिनसेनाचार्य इनकी संख्या ५३६ लिखते हैं । हरिवंशपुराणमें भगवानके कुल ६०२०० शिष्योंको मोक्ष गया लिखा है और उनके बाद तीन केवलज्ञानियों का होना बतलाया है। इस तरहपर संक्षेपमें दिगम्बर ग्रन्थों का परस्पर भेद निर्दिष्ट किया गया है । यह विशेष नहीं है । साधारण है और इसलिए कुछ भी नहीं है.। श्वेतांबर संप्रदायके ग्रंथों के समान वह नहीं है । श्वेतांबर संप्रदायके ग्रंथों में परस्पर एक दूप