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[१२] . चलता है। परन्तु उसे बनारसके उपरोक्त राजा अश्वसेन स्वीकार कर लेना जरा कठिन है क्योंकि वह नागवंशी हैं। इतनेपर भी जैन शास्त्रोंमें राजा अश्वसेनको उग्रवंशी बतलाना इस बातको सम्भव कर देता है कि वह नागवंशी हों, क्योंकि प्रस्तुत पुस्तकमें यथास्थान बता दिया गया है कि 'उग्र' का सम्बन्ध 'नागों'की 'उख' नामक जातिसे प्रगट होता है । जो हो, ब्राह्मण ग्रन्थोंके अतिरिक्त बौद्धग्रन्थोंसे भी इसी नामके समान एक राजाका पता चलता है। दीघनिकायके परिशिष्टमें सात राजाजोंका नामोल्लेख है और उन्हें 'भरत' कहा गया है । इससे यह तो स्पष्ट ही है कि वह अयोध्याके राजा भरतके वंशज अर्थात इक्ष्वाक्वंशी थे । इन राजाओंमें एक वस्तभू (विश्वभू) नामक भी है । इस नामकी सादृश्यता विश्वसेन है ! किन्तु यह नहीं बताया गया है कि वह कहांके राजा थे अतएव संभव है कि यह बनारसके राना विश्वसेन हों। सारां. शतः भगवान पार्श्वनाथ और उनके पिताका अस्तित्व भारतीय साहित्य में मिलता है। भगवान पार्श्वनाथके जीवन सम्बन्धमें रचे गए साहित्यपर
यदि हम दृष्टि डालें, तो हमें कहना भगवान पार्श्वनाथजी होगा कि वह आनकल भारतेतर सासंबंधी साहित्य । हित्यमें भी उपलब्ध हैं। अमेरिकाके
बाल्टीमोर विश्वविद्यालयके संस्कृत प्रोफेसर श्री मारिस ब्लूमफील्डने श्री भावदेवसुरि कृत 'पार्श्वचरित'का
१-कैब्रिज हिस्ट्री ऑफ इन्डिया भाग १ पृ. १५४ । २-पूर्व पुस्तक पृ० १७४ ।