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भाधारसे जो बात ठीक समझी, उसको दिगम्बर शास्त्रोंमें प्रगट कर दी। उनके लिये और कोई सामान्य अन्तर है। उपाय शेष न था । यह हम भी पहले स्वी
कार कर चुके हैं कि आजकलके अल्पज्ञ मानवोंके लिये यह संभव नहीं है कि वह पुरातनकालमें हुये महापुरुषोंके जीवनचरित्र यथाविधि ठीक लिख सकें । जो कुछ उपलब्ध साहित्य और अनुमान प्रमाणसे उचित प्रतीत होगा वह उसीको लिख देंगे । किन्तु इसके यह भी अर्थ नहीं है कि जिनवाणी पूर्वापर विरोधित है । यह किसी तरह भी संभव नहीं है । जैन सिद्धान्त अथवा दर्शन ग्रंथ बड़ी होशियारीके साथ सम्भालकर रक्खे गये हैं । यही कारण है कि उनमें किंचित भी अन्तर नहीं पड़ा है । जो जैन सिद्धान्त भगवान महावीरजीके समय एवं उनसे पहले जैनधर्ममें स्वीकृत थे, वही आज भी जैनधर्ममें मोजूद हैं । यह हमारा कोरा कथन ही नहीं है। प्रत्युत जैनग्रंथोंका आभ्यन्तर स्वरूप और बौद्धादि ग्रन्थोंकी साक्षी इसमें प्रमाणभूत है । इसके लिये हमारा " भगवान महावीर और म० बुद्ध" नामक ग्रंथ देखना चाहिये । अस्तु, जैनसिद्धान्तके अक्षुण्ण रहते हुये भी, यद्यपि उसमें भी विकृति लानेके प्रयत्न हुये थे जिसके फलरूप श्वेताम्बरादि आम्नाय निग्रन्थ संघमें भी मौजूद हैं, जैनपुराण ग्रंथोंमें भेद मौजूद है । यह क्यों और कैसे है यह ऊपर बताया ही जाचुका है । अतएव यहांपर हम पहिले दि. जैन संप्रदायके 'पार्श्वचरितों' में परस्पर भेदको देखनेका प्रयत्न करेंगे । सचमुच यह प्रभेद कुछ विशेष नहीं है । इससे भगवानके जीवनचरित्रमें कुछ भी अन्तर नहीं पड़ता है यह सामान्य