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मूल संस्कृत और हिन्दी टीका स० । मुद्रित अप्राप्य है । प्रसिद्ध जैन भंडारोंमें इ० लि० मिलता है ।
४. पार्श्वनाथपुराण - (मूल सं०) भ० चन्द्रकीर्ति प्रथित (सं० १६५४) ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवन बंबई और जैन मंदिर
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इटावा आदिमें प्राप्त है ।
५. पार्श्वाभ्युदय काव्य - श्री जिनसेनाचार्य (६५८ - ६७२ ई०) मूल और संस्कृत टीका सहित बंबईसे मुद्रित होचुका है । ६. उत्तरपुराण - श्री गुणभद्राचार्य ( ७४२ ई०) मूल संस्कृत और हिन्दी अनुवाद सहित इन्दौर से प्रकट होचुका है ।
७. पार्श्वपुराण - (सं०) वादिचंद्र प्रणीत ऐलक पन्नालाल सरस्वती भवनकी चतुर्थ वार्षिक रिपोर्टके ट० ९ ( ग्रन्थसूची ) पर इसका उल्लेख है । (सं० १६८३)
८. उत्तरपुराण - प्राकृत (अपभ्रंश) में श्री पुष्पदंत कविद्वारा प्रणीत (९६५ ई०) ।
९. पार्श्वपुराण - प्रा० ( अपभ्रंश) पद्मकीर्ति विरचित । समय अज्ञात | इसकी एक प्रति सं० १४७३ फाल्गुण वदी ९ बुद्धवाकी लिपि की हुई कार आके भंडार में है ।
१०. पार्श्वनाथपुराण - छंदोबद्ध हिन्दी - कविवर भूधरदासजी कृत । (सं० १७८९) बंबई से मुद्रित हुआ है ।
११. उत्तरपुराण - छंदोबद्ध हिन्दी कवि खुशालचंदकृत । ( सं० १७९९ ) ।
१२. पार्श्वजीवन कवित्त - (हिन्दी) अलीगंज (एटा) के जैन मंदिरके एक गुटका में अपूर्ण लिखे हुए हैं।