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अंग्रेजी अनुवाद अपनी विस्तृत भूमिका और टिप्पणियों सहित प्रकट किया है । यह “ Life and Stories of Jaina Saviour Parshvanatha " नामसे सर्वत्र प्रचलित है । दूसरा उल्लेखनीय ग्रन्थ जर्मन भाषामें “ Der Jainismus'' नामक है । इसके रचयिता बरलिन विश्वविद्यालयके प्रख्यात विद्वान् प्रा. डा० हेल्मुथ वॉन ग्लासेनाप्प हैं। आपने जैनधर्मका परिचय लिखते हुये, भगवान पार्श्वनाथनीके जीवनपर भी प्रकाश डाला है । इनके अतिरिक्त विदेशोंमें प्रकट हुई जैनधर्म सम्बंधी पुस्तकोंमें इनका उल्लेख सामान्य रूपसे भले ही हो, पर विशेष रूपसे नहीं है। इधर भारतीय साहित्यमें भगवान् पार्श्वनाथ नीके सम्बन्धमें दिगम्बर
और श्वेतांबर जैनोंके साहित्य ग्रन्थ हैं । श्वेताम्बर जैन अपने कल्पसूत्र आदि ग्रन्थोंको मौर्यकालीन श्री भद्रबाहु स्वामीकी यथावत रचना मानते हैं, परन्तु यह ठीक नहीं जंचता । प्रत्युत यह कहना पड़ेगा कि यह क्षमाश्रमणके समय या उनसे कुछ पहलेकी रचनायें हैं; जब कि यह लिपिबद्ध हुई थीं। अस्तु; अबतक हमारे ज्ञानमें इस विषयके निम्न ग्रन्थ आये हैं:--
. दिगम्बर सम्प्रदायके ग्रन्थ ।।
१. प्रथमानुयोग-५००० मध्यम पद ( अर्धमागधी) महावीरस्वामी द्वारा प्रतिपादित ( अप्राप्य )।
२. पार्धनाथचरित-श्री वादिराजसूरि प्रणीत (८६९ ई.) यह माणिकचन्द्र ग्रन्थमालामें मूल संस्कृत और जैन सि०प्र० संस्था कलकत्ता द्वारा हिन्दी अनुवाद सहित प्रकट हो चुका है।
३. पार्श्वनाथपुराण-श्रीसकलकीर्ति आचार्यकृत (सं० १४९५)