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[३६] नाना । उसने 'शुद्धाशुद्धिये मंत्र (एक खास श्रमण कथन) देखा
और वह पवित्र ह'गया । " यही कथा इसी ग्रन्थमें (१८।१।९) फिर कही गई है और इसमें उक्त मंत्र देखनेके स्थानमें इन्द्रको प्रनापतिके पास गया लिखा है, जिनने उसे ' उपहव्य ' दिया था । इन्द्र और यतियोंकी यह कथा ऐतरेय ब्राह्मण ( ७२८)
और तान्द्रय ब्राह्मण (११४ और १३।६।१७) में भी दी गई है । ऐतरेय ब्राह्मणमें इन्द्र यतियोंका भेड़ियोंके डालने और अरु. गमुखोंके मारने आदिके कारण सोमरस पान करनेसे वंचित हुआ लिखा है । और 'तन्ड्य ब्राह्मण' में कहा गया है कि इन्द्रने यतियोंको गीदड़ोंके डाल दिया, पर तौभी तीन-एथुरश्मि, बृहद. गिरि और रयोवन बच रहे । इन्द्रने इन्हें पाल पोस बड़ा किया और युवा होनेपर उन्हें वरदान दिया । पृथुरश्मिने राज्यबलकी आकांक्षा की-सो 'पर्थरस्म' समनके द्वारा इन्द्रने उसे रानवल
१-जैनोंकी देव शास्त्र गुरूपूजामें जो निम्न मंत्र हैं, वह शायद इसी 'शुद्धाशुद्धिय' मंत्रके द्योतक है, जिसको टीकाकार भी श्रमण मंत्र बतलाता है:
" अपवित्रः पवित्रो वा सुस्थितो दुःस्थितोऽपि वा । ध्यायेत्पंचनमस्कारं सर्वपापैः प्रमुच्यते ॥ १ ॥ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा ।
यः स्मरेत्परमात्मानं स बाह्याभ्यंतरे शुचिः॥२॥" २-यहां इन्द्रको 'शुद्धाशुद्धिय' मंत्र, जो जैनमंत्र प्रतीत होता है, के स्थानपर प्रजापतिके पास जाते लिखा सो यह भी हमारे इस वक्तव्यका • पोषक है कि प्रजापति जैनधर्म प्रणेताका सूचक है। अथर्ववेदके महाब्रात्य प्रजापति भी जैन और संभवतः श्री ऋषभदेव हैं । इससे भी प्रजापतिका जैन सम्बन्ध प्रकट है।