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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
उन्हें वस्त्र धारण का विधान है।
दौलत ‘क्रिया कोश' में कहा है कि आर्यिकायें एक सादी सफेद धोती (साड़ी), पिच्छी, कमण्डलु एवं शास्त्र रखती हैं। बैठकर करपात्र में आहार ग्रहण करती हैं तथा अपने हाथों से केशलुञ्चन करती हैं। इस प्रकार अट्ठाईस मूलगुण (उपचार से) और समाचार विधि का आर्यिकायें पालन करती हैं। साड़ी मात्र परिग्रह धारण करती हैं अर्थात् एक बार में एक साड़ी पहनती हैं, ऐसे दो साड़ी का परिग्रह रहता है।28
श्वेताम्बर परंपरा में साध्वी को चार वस्त्र रखने का विधान है। एक वस्त्र दो हाथ का, दो वस्त्र तीन हाथ के और एक वस्त्र चार हाथ का। किन्तु ये वस्त्र श्वेत रंग के ही होने चाहिए। श्वेत वस्त्र छोड़कर विविध रंगों आदि से विभूषित जो वस्त्र धारण करती हैं वह आर्या नहीं अपितु उसे शासन की अवहेलना करने वाली वेष-विडम्बनी कहा है। आर्यिकाओं की वसतिका
श्रमणों की तरह आर्यिकाओं को भी सदा अनियत विहार करते हुए संयम धर्मसाधना करते-कराते रहने का विधान है, किन्तु उन्हें विश्राम हेतु रात्रि में या कुछ दिन या चातुर्मास आदि में जहां, जब रुकना पड़ता है, तब उनके ठहरने की वसतिका कैसी होनी चाहिए? इस सबका यहां शास्त्रोक्त रीति से प्रतिपादन किया है।
गृहस्थों के मिश्रण से रहित वसतिका, जहाँ परस्त्री-लंपट, चोर, दुष्टजन, तिर्यञ्चों एवं असंयत जनों का संपर्क न हो, साथ ही जहाँ यतियों का निवास या उनकी सन्निकटता न हो, असंज्ञियों (अज्ञानियों) का आना-जाना न हो ऐसी संक्लेश रहित, बाल, वृद्ध आदि सभी के गमनागमन योग्य, विशुद्ध संचार युक्त प्रदेश में दो, तीन अथवा इससे भी अधिक संख्या में एक साथ मिलकर आर्यिकाओं को रहना चाहिए। श्वेताम्बर परंपरा के अनुसार जहाँ मनुष्य अधिक एकत्रित होते हों- ऐसे राजपथ-मुख्यमार्ग, धर्मशाला और तीन-चार रास्तों के संगम स्थल पर आर्यिकाओं को नहीं ठहरना चाहिए। खुले स्थान पर तथा बिना फाटक वाले स्थान पर भी नहीं रहना चाहिए। जिस उपाश्रय के समीप गृहस्थ रहते हों वहाँ साधुओं को नहीं रहना चाहिए किन्तु साध्वियाँ रह सकती हैं। ___वसतिकाओं में आर्यिकायें मात्सर्यभाव छोड़कर एक दूसरे के अनुकूल तथा एक दूसरे के रक्षण के अभिप्राय में पूर्ण तत्पर रहती हैं। रोष, बैर और मायाचार जैसे विकारों से रहित, लज्जा, मर्यादा और उभयकुल-पितृकुल, पतिकुल अथवा गुरुकुल के अनुकूल आचरण (क्रियाओं) द्वारा अपने चारित्र की रक्षा करती हुई रहती हैं। आर्यिकाओं में भय, रोष आदि दोषों का सर्वथा अभाव पाया जाता है। तभी तो ज्ञानार्णव में कहा है शम, शील और संयम से युक्त अपने वंश में तिलक के समान, श्रुत तथा सत्य से समन्वित ये नारियाँ (आर्यिकायें) धन्य हैं। समाचारः विहित एवं निषिद्ध
चरणानुयोग विषय जैन साहित्य में श्रमण और आर्यिकाओं दोनों के समाचार आदि प्रायः समान रूप से प्रतिपादित हैं। मूलाचारकार ने इनके समाचार के विषय में कहा है कि