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अनेकान्त 64/1, जनवरी-मार्च 2011
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प्रकृति के अनुकूल न होने के कारण आर्यिकाओं को मुनियों जैसे आचार का पालन संभव नहीं है। इसलिए उन्हें उपचार से मूलगुणों का धारक माना है। इसलिए दिगम्बर परंपरा में स्त्रियों को तद्भव मोक्षगामी नहीं माना! क्योंकि मोक्ष के कारणभूत जो ज्ञानादि गुण तथा तप हैं, उनका प्रकर्ष स्त्रियों में संभव नहीं है। इसी तरह वे सबसे उत्कृष्ट पाप के कारणभूत अंतिम (सप्तम) नरक भी नहीं जा सकतीं, जबकि पुरुष जा सकता है।
इसी तरह वस्त्र ग्रहण की अनिवार्यता के कारण बाह्य परिग्रह तथा स्व शरीर का अनुरागादि रूप आभ्यन्तर परिग्रह भी स्त्रियों में पाया जाता है और फिर शास्त्रों में वस्त्ररहित संयम स्त्रियों को नहीं बतलाया है। अतः विरक्तावस्था में भी स्त्रियों को वस्त्र धारण का विधान है। अत: निर्दोष होने पर भी उन्हें अपना शरीर सदा वस्त्रों से ढके रहना पड़ता है। इसीलिए दिगम्बर परंपरा में स्त्रियों को तद्भव मोक्षगामी होने का विधान नहीं है।' आर्यिकाओं में उपचार से महाव्रत भी श्रमण संघ की व्यवस्था मात्र के लिए कहे गये हैं किन्तु उपचार में साक्षात् होने की सामर्थ्य नहीं होती। यदि स्त्री तद्भव से मोक्ष जाती होती तो सौ वर्ष की दीक्षिता आर्यिका के द्वारा आज का नवदीक्षित मुनि भी वंदनीय कैसे होता? वह आर्यिका ही उस श्रमण द्वारा वंदनीय क्यों न होती?'
विरक्त स्त्रियों को भी वस्त्र धारण के विधान में उनकी शरीर प्रवृत्ति ही मुख्य कारण है, क्योंकि प्रतिमास चित्तशुद्धि का विनाशक रक्त-स्रवण होता है, कोख, योनि और स्तन आदि अवयवों में कई तरह के सम्मूर्छन सूक्ष्मजीव उत्पन्न और मरण को प्राप्त होते रहने से उनसे पूर्ण संयम का पालन संभव नहीं हो सकता। इसीलिए इन्हीं सब कारणों के साथ ही स्वभाव से पूर्ण निर्भयता, निराकुलता एवं निर्मलता का अभाव, परिणामों में शिथिलता का सद्भाव तथा नि:शंक रूप में एकाग्रचिन्ता निरोध रूप ध्यान का अभाव होने के कारण ऐसा कहा गया है। इस प्रकार पूर्वोक्त कारणों के साथ ही उत्तम संहनन के अभाव के कारण शुद्धोपयोग रूप परिणाम एवं सामायिकचारित्र की ही प्राप्ति होना संभव नहीं है, अतः इनमें उपचार से ही महाव्रत कहे गये हैं।
श्वेताम्बर परंपरा के बृहत्कल्प में भी कहा है कि साध्वियाँ भिक्षु प्रतिमायें धारण नहीं कर सकतीं। लकुटासन-उत्कटुकासन, वीरासन आदि आसन नहीं कर सकतीं। गाँव के बाहर सूर्य के सामने हाथ ऊँचा करके आतापना नहीं ले सकतीं तथा अचेल एवं अपात्र (जिनकल्प) अवस्था धारण नहीं कर सकतीं। इस सबके बावजूद श्वेताम्बर परंपरा में स्त्रियों को मोक्ष प्राप्ति का अधिकारी माना गया है। बौद्ध परंपरा में भी स्त्री सम्यक्-सम्बुद्ध नहीं हो सकती। आर्यिका के लिए प्रयुक्त शब्द
वर्तमान समय में सामान्यतः दिगम्बर परंपरा में महाव्रत आदि धारण करने वाली दीक्षित स्त्री को 'आर्यिका' तथा श्वेताम्बर परंपरा में इन्हें 'साध्वी' कहा जाता है। दिगम्बर प्राचीन शास्त्रों में इनके लिए आर्यिका, आर्या, विरती, संयता, श्रमणी4 आदि शब्दों के प्रयोग मिलते हैं। प्रधान आर्यिका को 'गणिनी तथा संयम, साधना एवं दीक्षा में ज्येष्ठ