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अनेकान्त
पाया। एक रात्रि में राजा गाढ़ निद्रा में सोरहा था और उससे यशोषवल विजयी हुए। और उन्होंने बल्लाल का रानी की नीद यकायक खुल गई। उसने सुना कि दो नाग शिरकमल कुमारपाल को भेट के रूप में अर्पण किया मापस में बातचीत कर रहे हैं। एक नाग दूसरे से कह होगा। रहा था, 'अरे तेरा जीवन कितना धोखे में है, राजा अगर यशोधवल ने बल्लाल को मारा इसलिये कि उनका थोड़ा चूना खा जायगा तो तू मर जायगा और राजा की उल्लेख शिलालेख मे आना स्वाभाविक है। तथा यह व्याधि भी चली जायगी।
सामन्त राजा होने और कुमारपाल की सहायता से बल्लाल बाद में दूसरा भी पहले को कहने लगा, 'अरे तेरा को हराया इसलिए सार्वभौम के नाते कुमारपाल को भी जीवन घोखे में ही है। अगर राजा उबाला हुमा तेल 'बल्लाल राज के मस्तक पर उछलने वाला सिंह भी कहा तेरे बीच में डाल दे तो, तू समूल नष्ट होगा और वहाँ हो । इस प्रकार के विचार से संतोष तो कर लिया था। की धन-राशि राजा को प्राप्त होगी।"
मगर अाशंका बनी रहती थी। रानी ने यह शुभ समाचार प्रातःकाल राजा को
लक्ष्मीशंकर व्यास के 'चौलुक्य कुमारपाल' नाम की सुनाया। राजा ने प्रतिज्ञा की, कि अगर यह सच हो जाय
पुस्तक का जब बारीकी से अध्ययन किया तब पता चला तो मैं यहां उसी धनराशि से सौ मंदिर बनवाऊँगा । राजा
कि, उस समय बल्लाल नाम के दो राजा कुमारपाल के ने ठीक वैसा ही किया। उससे राजा निरोग और धनवान
विरुद्ध थे । व्यासजी पृष्ठ १०२ पर लिखते हैं-'अपने (तथा शत्रु रहित) हो गया। राजा ने वहाँ सो मन्दिर
किसी से कुछ प्रतिज्ञा कर......उज्जयिनी के राजा बनवाना प्रारम्भ किया। लेकिन वह ६९ ही बनवा पाया।
बल्लाल तथा पश्चिमी गुजरात के राजारों से मैत्री कर इसीलिए पावागिरि को ऊन भी कहते हैं । प्रादि।
ली।......उज्जयिनी राज देश देशान्तर में भ्रमणशील गजेटीयर में उल्लिखित इस बल्लाल राजा को प्रो० ।
व्यवसायियों से गुजरात की वास्तविक स्थिति से परिचित हीरालालजी ने होयसल नरेश बताया है, जो प्राय: जैन हो चुका था। उसने मालव नरेश बल्लाल से एक सैनिक और समकालीन नरेश थे। लेकिन इसी समय के दरम्यान अभिसन्धि कर ली थी। एक मालव नरेश बल्लाल का भी इतिहास में उल्लेख
प्रामुख लेखक डॉ. राजबली पाण्डेय जी पृष्ठ ४ पर मिलता है। जिसको परमार राजा यशोधवल ने या
लिखते हैं कि, 'सपादलक्ष के चौहान राजाने अपने वर्तमान कुमारपाल ने मारा था।
नागोर की ओर से चढाई की, तो दूसरी पोर से उज्जयिनी एक ही व्यक्ति के विषय में ऐसे परस्पर भिन्न दो के राजा बल्लाल ने और तीसरी पोर से चंद्रावती के उल्लेख क्यों है ? इस पर मेरी यह समझ थी कि, चौलुक्य अधिपति विक्रमसिंह ने माक्रमण कर दिया। सिद्धराज जयसिंह और परमार राजा विक्रमसिंह का १२ व्यासजी पृष्ठ १०७ पर लिखते है-'अर्णोराज साल तक संघर्ष चलता रहा । और विक्रमसिंह कुमारपाल गुजरात के सीमात की ओर बढ़ पाया और उसने अवंती यद्यपि प्रारम्भ में शरण पाया, तो भी बाद में विरुद्ध हो नरेश बल्लाल के राज्य की सीमा में प्रवेश कर प्रणहिल गया था। वह मालव नरेश बल्लाल को मिला था । उसको पुर की ओर अग्रसर हो रहा था। कुमारपाल तत्काल ही मारकर उसका राज्य उसके भतीजे यशोघवल को (शायद) अपनी सेना एकत्र कर बल्लाल का सामना करने के लिये इस शर्त पर दिया था, कि उसे बल्लाल के विरुद्ध रवाना हुआ। हाथी पर सवार कुमारपाल ने बल्लाल पर कुमारपाल को सहायता करना।
प्रहार कर उसे पराजित किया । राज्य प्राप्ति के लोभ में उसने यह भी प्रतिज्ञा की, वही पृष्ट १०६ पर-बडनगर प्रशस्ति में कहा गया "मैं बल्लाल का शिरच्छेद करके पापको अपित करूँगा, है कि, 'मालव नरेश अपने देश की सुरक्षा करते हुए हत तब ही सिंहासन ग्रहण करूंगा। इस प्रतिज्ञा पूर्ति में हुमा । उसका सिर कुमारपाल के राज प्रासाद के द्वार यशोषवल को सैनिक सहायता कुमारपाल ने दी होगी, पर लटकाया गया था ।