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भारत में बर्मनाक कथा-कोष
जैन और जैन और बौद्ध उपदेशों के साथ । साख्य और पर अत्यधिक प्रभाव डालता है। बुद्ध ऐसे बंध यावन्तरी योग दोनों ही यद्यपि प्रब सनातन ब्राह्मण-धर्म के पेटे में है कि जो मानव के दुःखों की चिकित्सा अपने ही धार्मिक समाविष्ट हो गए है, परन्तु मूलत: वे ब्राह्मण-धर्म नही सिद्धांत रूपी प्रौषधियों को देकर करने के इच्छुक हैं। थे। वे वेद से स्वतंत्र थे। उसने यह स्थिति स्वीकार कर वे एक सफल उपदेशक थे और इसलिए वे लोगों के ली है कि वैरागी काव्य के सिद्धों के कुछ जीवनवृत्य और शरीर और मन दोनों पर ही शीघ्र अधिकार जमा लेते उक्तियाँ जो कि महाभारत में मिलती है, निःसन्देह जैन थे। फलत: हम पढ़ते हैं कि वे अनेक प्राल्हादक भौर और बौद्ध शास्त्रों से लिए गए है। जो जीवन वृत्य और मनोरंजक कथाएं जो कि शिक्षाप्रद और सुश्राव्य दोनों ही उक्तियों सब में समान रूप से है, उनके सम्बन्ध मे दो होती थीं, कहते और उन्हें सुनकर मब प्राणी इह भव सम्भावनाएं हो सकती है-'पहली तो यह कि मूलतः वे और पर भव दोनों में ही सुखी होते थे । भारतीय विचार बौद्ध या जैन ही हो, या फिर यह कि ये सब अनुरूप पद्धति में दृष्टा ने महत्व का काम किया है और अनुमान प्रश किसी एक ही श्रोत याने इससे भी प्राचीनतर वैरागी । वाक्य (सिलोनिज्म) में दृष्टात तो होते ही है। यही साहित्य के हो कि जो सम्भवतया योग अथवा साख्य
कारण था कि बुद्धदेव सभी प्रकार के जीवनों से अपने को योग की शिक्षा के सम्बन्ध मे उ भूत हुअा हो।'
पूर्ण अवगत रखते थे। इसलिए उदाहरण या दृष्टांत वे यद्यपि यह अभिगमन कुछ भिन्न है, फिर भी वैरागी
प्रस्तुत करते थे, श्रोतामों को उनकी बुद्धिमत्ता एवम् साहित्य जिसका कि विवेचन ऊपर किया गया है, और उनके उपदेश की प्रामाणिकता मे सहज ही विश्वास हो मागध-धर्म जिसकी की रूपरेखा मैने यहाँ दी है, दोनों में जाता था। यह भी बहुत सम्भव है कि बुद्ध अपने उपदेशों बहुत समानता है । मगध के भौगोलिक पक्षपात के सिवा, में लोक-कथा का भी समावेश करते थे। पाली साहित्य दोनो ही वाक्य-विशेष प्रायः एक ही प्रकार के भावों को मे इस बात के प्रचुर प्रमाण हैं कि बौद्ध साधुनों पौर प्रकाश करते हैं। यह एक दुर्भाग्य की ही बात है कि उपदेशकों ने अपनी धर्म-देशनामों को श्रद्धा, धर्म के लिए मंखली गोशाल, पूरण काश्यप, आदि मादि ज्ञानियों की तपस्या, या दुःख सहन, सफल प्रायश्चित और महंत-पद कृतियाँ अाज हमें कोई प्राप्त नहीं हैं। परन्तु जो प्राचीन प्राप्ति सम्बन्धी कथानों के अनेक दृष्टान्तों द्वारा खूब ही भारतीय साहित्य वारसे में हमें प्राप्त हुआ है, उससे सजाते थे। कभी-कभी वे धर्मप्राण जीवनियों की कल्पना विण्टरनिटज की कही सिद्धों की जीवनियों की प्रकृति भी कर लेते थे। परन्तु अधिकांशतया वे पशुओं की पौर नैतिक-धार्मिक दृष्टियो को मद्दे नजर रखते हुए
नीति कथानों, रूप कथानों और लोक कथामों के सम्पन्न यह नि. सकोच कहा जा सकता है कि जैन और बौद्ध
भण्डार से या मनाध्यात्मिक साहित्य मे से ही चुनी हुई साहित्य उस वैरागी काव्य के प्रधान रक्षक हैं और जैन
कथामों को ही थोड़ा सा हेर-फेर कर अपने धार्मिक धर्म एवं प्रार्य बौद्ध धर्म ही उस मगध धर्म के प्रति
सिद्धांतों के प्रचार के उपयुक्त और अनुरूप बना लेते थे। उत्कृष्ट प्रतिनिधि है।
लोक या प्राध्यात्मिक साहित्यिक किसी भी ज्यानक को ३ भादि बौद्ध साहित्य :
बौद्ध रूप देने में बोधिसत्व का सिद्धांत, पुनर्जन्म और सारे ही बौद्ध साहित्य में जिसका कि अध्ययन जैन कर्म-सिद्धांत की दृष्टि से, एक उत्कृष्ट साधन था। साहित्य की अपेक्षा अधिक पूर्णता और सूक्ष्मता से किया उपमानों और दृष्टांतों का जनता पर बड़ा ही प्रभाव जा रहा है, बुद्ध का व्यक्तित्व प्रायः प्रत्येक संदर्भ में पाठक पड़ता है और उनसे श्रोता विशुद्ध तों की प्र धर्म ६. विन्टरनिटज के ग्रन्थ सम प्रावलम्स आफ इंडियन
का ममं बहुत शीघ्र समझ जाते हैं । प्रमुख उपदेष्टापों ने लिटरेचर कलकत्ता १९२५ में उत्कृष्ट लेख एसेटिक इसीलिए मा
इसीलिए अपनी देशनाओं को मनोरंजक और कर्णप्रिय लिटरेचर इन इन्सेन्ट इंडिया का सार संक्षेप में ७. इन्साइक्लोपीरिया माफ एपिक्स एण्ड रिसीवनामा. दिया है।
७, पृ.४११।