Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 323
________________ शीलवती सुदर्शन परमानन्द जैन भारत के पूर्वी अंचल मे अंग देश की राजधानी चम्पा थी । वहा राजा घाड़ी वाहन राज्य करता था । उसकी रानी का नाम अभया था उसी नगर मे सुदर्शन नाम का अत्यन्त रूपवान और दयालु एक नगरसेठ रहता था । वह धर्मात्मा, सच्चरित्र और प्रौदार्य आदि सद्गुणो सेभूषित था। उसका आचार-विचार अत्यन्त सीधासादा था, वह दीन-दुखियो के दुख को दूर करना अपना कर्तव्य मानता था उसका शरीर तेजपुज से आलोकित था। उसके विचारो मे स्थिरता और करुणा की झलक मिलती थी । श्रावक व्रतों का अनुष्ठाता, गंभीर, वाणी मे मधुरता, सत्यता एव स्नेह श्रौर क्षमा का भडार था । उसकी मनोरमा नाम की धर्मपत्नी प्रत्यन्त रूपवान, सुशीला. विदुषी तथा कर्तव्यपरायणा थी । वह अपने पति के समान ही उच्च विचारो और सद्गुणों से भूषित थी। उसके चार पुत्र थे जो सुन्दर, गुणग्राही आज्ञाकारी और अपने माता पिता के समान ही मार्मिक समुदार एवं परोपकारी थे। येष्ठ पुत्र सुकान्त बड़ा ही धर्मात्मा र कर्तव्यपरायण था । सेठ सुदर्शन का घर उस समय स्वर्गतुल्य बना हुआ था । । सुदर्शन का मित्र कपिल नाम का एक प्रोहित था । एक दिन वह प्रयोजनवया कपिल के घर गया। कपिल ने उसका सादर सत्कार किया, और कुशल बात होने के पश्चात् दोनों मित्र सौहार्द वश किसी विषय मे विचारविनिमय करने लगे। उसी समय प्रोहितजी की धर्मपत्नी कपिला ने कमरे में प्रवेश किया, कमरे में प्रविष्ट होते ही उसकी नजर सुदर्शन पर पड़ी। वह सुदर्शन की रूप-राशि को देखकर उनके रूप पर मुग्ध हो गई। थोड़ी देर में सुदर्शन अपने घर वापिस चला गया। कपिला सुदर्शन की चाह में व्याकुल एवं वेद-सिन्न होने लगी, उसे खाना-पीना आदि सभी कार्य विरस हो गये, उसका जी अब किसी कार्य मे नही लगता था। क्योकि उसका अन्तर्मानस कामकी दाहक अग्नि से प्रज्वलित जो हो रहा था । शरीर प्रशान्त और ताप ज्वर से विकल हो रहा था । काम ज्वर ने उसे उस जो लिया था, वह विवेकशून्य हो गई। रात्रि में प्रयत्न करने पर भी उसे नीद नही आती थी । उसका मन वासना से अधिकृत हो गया था। वह निरन्तर इसी सोचविचार में निमग्न रहती थी कि किसी तरह उसकी भेट सुदर्शन से हो जाय, परन्तु ऐसा अवसर मिलना कठिन ही था । कुछ दिनो बाद कपिल ब्राह्मण कार्यवश ग्रामान्तर चला गया । कपिला ने सोचा आज का दिन शुभ है, मेरी अभिलाषा उपायान्तर से फलवती हो सकती है। कोई त्रिया चरित्र बेलना चाहिए, जिससे सुदर्शन को अपनी चंगुल मे फसाया जा सके। ऐसा विचार कर एक चतुर दासी सुदर्शन के पास भेजी, उसने जाकर सुदर्शन से कहा कि आपके मित्र कपिल प्रोहित मस्त बीमार है, जब कभी होश में प्राते है तब सुदर्शन की रट लगाते है । अतः प्राप तत्काल चले और उन्हे सान्त्वना दें, जिससे उनकी अभिलाषा कम हो । सुदर्शन ने जब अपने मित्र की बीमारी का हाल सुना तो वह उससे मिलने के लिए उत्सुक हो उठा और तुरन्त ही उठकर पुरोहित के मकान की श्रोर चल दिया पर पहुंचते ही दासी ने एक कमरे की ओर संकेत किया, वह वहां चले गए। वहा सेठ ने दूर से ही सफेद चादर ओढ़े हुए मित्र को पलंग पर सोते हुए देखा, अन्दर मे सिसकियाँ भरने की आवाज आ रही थी, सुदर्शन ने उसके समीप पहुँच कर चादर को जरा हटाया तो वहा मित्र की बजाय मित्रपत्नी के सोनेका प्रभास मिला। सुदर्शन तत्काल समझ गया कि यह कोई मायाजाल रचा गया है। वह तत्काल वहां से मुड़ा तो देखा कि बाहर से किवाड़ बन्द हैं, पीछे की ओर झांका तो मनोहर वेष-भूषा में सामने कपिला खड़ी है। सुदर्शन ने डांट कर कहा मुझे

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