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अनेकान्त
-३००,२२०६
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शासन ग्रंथ जो लगभग वि० सं० की प्राठवीं सदी का है, मे घरणेन्द्र पद्मावती को मंत्र के अधिष्ठातृ देवता के रूप में माना है" वि० [सं० वीं सदी में भगवज्जिनसेनाचार्य ने 'पाय' का निर्माण किया जिसमें पर पद्मा वती का वर्णन है। वादिराज सूरि ने वि० सं० १०५२ में पादवनाथ चरित्र की रचना की। इसमें कमठ उपसर्ग का वर्णन है तथा धरणेद्र पद्मावती का उल्लेख है । श्वेताम्बर प्राचार्य भावदेव सूरि ने भी पार्श्वनाथ चरित्र की रचना की जिसमें धरणेंद्र पद्मावती का जीवन परिचय दिया" । मल्लिषेण सूरि ने भैरव पद्मावती कल्प की रचना की जिसमें देवी पद्मावती का वर्णन किया। जिनप्रभ सूरि ने विविध तीर्थ कल्प की रचना की, जिसके पदमावती कल्प में देवी के चमत्कारों की कथा का वर्णन है"। साथ ही पद्मावती चतुष्पदी प्राकृत काव्य की रचना की जिसमे ४६ गाथाएँ है"।
'मुनि वंशाभ्युदय' कन्नडी भाषा के काव्य ग्रंथ की पांचवीं संधि में देवी का उल्लेख है। इसके अलावा माणिक्यचन्द्र, सकल कीर्ति, पद्मसुन्दर मौर उदयवीर गणि द्वारा रचित पार्श्वनाथ चरित्रों में कमठ कथा मौर देवी की भक्ति का उल्लेख मिलता है। महत्व :
जैनधर्म में २४ तीर्थकरों की निर्धारित शासन देवियों है"। इन सब में अधिक महत्त्व तेइसवे तीर्थकर पादवनाथ की शासन देवी पद्मावती को दिया गया है ।
भगवान् पार्श्वनाथ के समय में जैनधर्म को अधिक
विधानुशासन प्रथम कल्प
३५ मूनि सुकुमार जैन
'भैरव पद्मावती कल्प
३६ यह ग्रंथ हरगोविंद दास और बेचरदास द्वारा संपादित तथा प्रकाशित सन् १९१२ ।
३७ मलिषेण सूरि भैरव पद्मावती कल्प प्रध्या० ३। ३८ जिनप्रभ सूरि विविध तीर्थ कल्प सिंधी जैन प्रथ
माला वि. सं. १६६० पृ. ६८-६६ ।
३६ बेलनकर : जैन रत्नकोष, जि. १, भंडारकर रिसर्च
इन्स्टीट्यूट पूना, १२४४, पृ. २३५ ।
४० बनर्जी जे. एन. जैन माइकोनोग्राफी पु. ४२५, एक ग्राफ इम्पीरियल यूनिटी, विद्या भवन बंबई ।
उन्नत करने में पद्मावती का योग रहा है तथा इनके पति परमेद ने कमठ उपसर्ग से पार्श्वनाथ की रक्षा की, इससे गुणों के संग्रह मे 'दक्ष' और जिन शासन की रक्षा में निपुण होने के कारण 'यक्ष' की संज्ञा दी गई" ।
प्र० नेमिदत्त कृत धारावना कथाकोष और देव चन्द्र कृत 'राजा बलि कथे' मे उल्लेख है कि भट्टाकलंक का विवाद बौद्धों के साथ वि० स० सातवी सदी में हुआ था तब देवी के द्वारा बताये गये उपाय से ही तारा, जो बौद्धों की देवी है को हराया था। 'राजा बलि कथे' कन्नडी ग्रंथ है जिसका फग्रेजी अनुवाद रायस महोदय ने किया है।
आराधना कथाकोष से ज्ञात होता है कि प्राचार्य पात्र केसरी की शंका का समाधान पद्मावती ने किया था जिसका समर्थन श्री वादिराजसूरि के न्यायविनिश्वया लंकार से होता है। इस घटना का उल्लेख श्रवण वेलगोला के शिलालेख न० ५४ से होता है - "देवी पद्मावती सीमधर स्वामी के समवशरण में गयी और गणधर के प्रसाद से एक ऐसा श्लोक लायी जो विलक्षण के कदर्थन का मूलाधार बना" ।
भटुबाह स्वामी ने 'उबसम्मगहर स्तोत्र' का प्रारम्भ भगवान पार्श्वनाथ और पार्श्वयक्ष स्तुति से किया है इस स्तोत्र से यह स्पष्ट है कि मुनि भद्रबाहु स्वामी के सम की रक्षा घरणेंद्र पद्मावती ने एक व्यतर के उपसगं से की थी । इसी कारण यह स्तोत्र घरणेद्र पद्मावती की भक्ति से परिपूर्ण है । भगवती सूत्र में भी देवी का उल्लेख है" । ४१ तस्याः पतिरतु गुणसंग्रहृदक्षता यक्षो व भूव जिन
शासन रक्षणज्ञः । राजसूरि पार्श्वनाथ चरित्र १२, ४२ पृ. ४१५ ।
४२ महिमास पात्रकेसरिगुरो; परं भवति यस्य भक्त्यासीत् पद्मावती सहाया त्रिलक्षणं कदनं कर्तुम् । न्यायविनिश्चयालंकार ।
४३ जैन शिलालेख संग्रह प्रथम भाग पू. १०१ । ४४ भद्रबाहु स्वामी उवसम्गहर स्तोत्र' जैन स्तोत्र संदोह भा. २१-१३ डा. जे.सी. जैन लाइफ इन एन्सीयण्ट इंडिया एज टिपेक्टेड इन अन केनन्स पृ. २२६ ।
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