Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 319
________________ २९८, वर्ष २२ कि०६ अनेकान्त पदमावती कल्प' में है। इसी प्रकार भैरव पद्मावती गये है । लक्ष्मी का जन्म समुद्र से हुग्रा जो निधि तथा कल्प मे इन नागों की उत्पत्ति तथा वर्ण का उल्लेख सर्पो.का वास है इससे घन देवी लक्ष्मी को सर्प देवी मिलता है-वासुकी और शख, क्षत्रिय, अनन्त और पद्मा के रूप में माना जाना स्वाभाविक लगता है। कुलिक-ब्राह्मण, तक्षक और महापद्म-वैश्य तथा कारबोटक इस प्रकार हिन्दू, शैव, बौद्ध, और जैनधर्म में सर्प और पद्म शूद्र वर्ण के । वर्ण के अनुसार रंग भी चित्रित देवी के उल्लेख मिलते है, पर उसके नाम । किया गया है - क्षत्रिय वर्ण के सर्प लाल रंग के, ब्राह्मण- है। जैनधर्म में पद्मावती सर्प देवी की कथा इस प्रकार मयक, वैश्य-पीले तथा शूद्र वर्ण के सर्प काने रंग के है। होते हैं।" “पूर्व जन्म पद्मावती तथा धरणेद्र नाग, नागिन थे। अमिताभ के सेवक के रूप मे पाठो प्रकार के नामो ये दोनों एक लकड़ी में थे, उस लकड़ी को एक साधु ने का उल्लेख किया गया है। इन ध्यानी बुद्ध, शुक्ला, भाग मे लगा दिया था। उसी समय भगवान पार्श्वनाथ कुरुकूल्ला का निरूपण पदमावती के रूप में कर सकते है वहां पहुंच गये और दोनों नाग नागिन की रक्षा की, पर ऐसा ब्राह्मण और जैन दर्शन में है। वे झलुस गये थे । मरते समय पाश्र्वनाथ ने दोनों को ___इसी प्रकार तीसरी सदी का अभिलेख, जो भरहुत णमोकार मत्र सुनाया जिसके प्रभाव से मरकर भवनवासी स्तूप के द्वार से प्राप्त हमा-में नाग राजाप्रो की राज- देव (युगल) के रूप में उत्पन्न हुए।" जब भगवान घानी पद्मावती का उल्लेख है। इस नगर का उल्लेख पाश्वनाथ तप कर रहे थे तब पार्श्वनाथ के शत्रु कमठ ने विष्णु पुराण तथा भवभूति के 'मालती माधव' मे भी इनका तप भंग करने के लिए उपसर्ग किया तब दोनों ने किया गया है। मणी मयी फण तान कर भगवान पार्श्वनाथ की पाहन कुमार स्वामी ने नागों को जल चिह्न भी माना है। वर्षा से रक्षा की।" ये दोनो पार्श्वनाथ के भक्त थे। पदमा को धन तथा समृद्धि की देवी कहा गया है तथा पद्मावती का स्वरूप : इसे 'श्री' से जाना जाता है। इसी प्राधार पर नव प्रकार पद्मावती देवी के चार हाथ जिनमें दायी मोर का की निधि-पद्म, महापद्म, मकर कच्छप, मुकुद, नीम, का एक हाथ वरद मुद्रा मे रहता है और दूसरे हाथ में वर्छ, नंद और शख के रूप मे मानी गयी है । इन अंकुश । वायी मोर के एक हाथ मे दिव्य फल और दूसरे निधियों का संबध सर्पो से इसलिए है क्योंकि प्रत्येक सर्प में पाश रहता है ।" अकुश और पाश से लपटें निकलती फण में एक विशेष प्रकार की मणी रहती है। उस मणी रहती है। इसके तीन नेत्र होते है। तीसरा नेत्र कोष को जल में से ही प्राप्त करते हैं। इसीलिए समुद्र को के समय ही खुलता है तथा उसमे से विकराल क्रोधाग्नि रत्नाकर कहा गया है।" निकलने लगती है।" इसके सिर पर पंच फणी सर्प छत्र नव प्रकार की निधि और आठ प्रकार के सर्प माने रहता है।" देवी का वाहन कुर्कुट है जिसकी एक बंद ९ भैरव पद्मावती कल्प प. १० श्लोक १४ । १४ भावदेव सूरि : पार्श्वदेव चरित्र ६,५०-६८ । १. वही, १५-१६। १५ गुणभद्र : उत्तर पुराण ७३. ४३६-४० । ११ पद्मपुराण, पृ.२, भैष्य पुराण, भैरव पद्मावती, १६ भैरव पद्मावती कल्प २,१२।। कल्प १०-१४ । १७ "व्याघ्रो रोल्का सहस्र ज्वलदलल शिखालोलपाशां१२ दी साइट प्राफ पद्मावती-वाई. एम. वी. गद्रे, ___ कुशाढये।" पद्मावमी स्तोत्र, श्लोक १; भैरव • मार्कालाजीकल सर्वे प्राफ इंडिया वार्षिक रिपोर्ट पद्मावती कल्प, पृ. ७८ । ' १९१५-१६, पृ. १०४-१०५। १८ वही २,१२, २,२। १३ बनर्जी जे. एन : डब्लपमेंट माफ हिन्दू प्राइकोनो- १६ हेमचन्द्राचार्य : अभिधान चिंतामणी, पृ. ४३ । ग्राफी, पृ. ११६, पाठ टिप्पणी १ । २० पाशाङ्कुशी पद्म वरे रक्तवर्णा चतुर्भुजा ।

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