Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 320
________________ पपावती २२१ में समूचे विश्व को समाप्त करने की शक्ति है।" नालंदा उत्खनन में एक चतुर्भुजी यक्षी की मूर्ति पद्मावती के दो रूप-सौम्य रौद्र । रौद्र रूप से प्रत्या- प्राप्त हुई है, जो पद्मावती की है । यह उत्तरी भारत में चारियों का नाश होता है और सौम्य से विश्व कल्याण । अपनी समता नहीं रखती।" नालंदा के एक जैन मदिर सौम्य रूप में होने पर देवी के शरीर से उषा काल के में प्रवेश करते ही दांयी पोर के एक पाले में एक सप्त सूर्य की भाभा-सी फूटने लगती और चेहरा प्रसन्न हो मणी करीवन डेढ़ फुट की पार्श्वनाथ " प्रतिमा है, उभय जाता है तथा हाथ पैरों से कमल की सी सुगन्ध निकलने पार्श्व में चमरधारी पार्षद खड़े हैं तथा निम्न माग लगती है। में चतुर्भुजी देवी पद्मावती हैं। उक्त विवरण ज्ञात करने के बाद पद्मावती देवी के पूना के प्रादीश्वर मन्दिर में एक पद्वती मूर्ति है जो विषय मे पुरातात्विक तथा साहित्यिक साक्ष्यों को दृष्टि फलो और वस्त्रो से सुसज्जित है सुसज्जित है।" वर्षा गत कर लेना आवश्यक है। जिले के सिंधी ग्राम के मन्दिर मे एकसुन्दर भूरे पाषण पुरातात्त्विक : की खड्गासन पदमावती मूर्ति है"। इसी प्रकार नागपुर साहित्य में पद्मावती और अम्बिका को एक ही के मन्दिर में भी काले पाषाण की देवी की मूर्ति है । माना गया है पर पुरातत्त्व मे इन दोनो की भिन्न-भिन्न साहित्यक: मूर्तिया है। अम्बिका" को प्राचीन काल की तथा देवी पदमावती का तीसरी सदी के निर्वाण कलिका" पद्मावती की मध्यकाल की अनेक मूर्तिया प्राप्त होती है। तथा वि. स. छठवी सदी के तिलोय पण्णत्ति" में उल्लेख खड गिरि की गुफा में चौबीस तीर्थंकरों की मूर्तियाँ मिलता है। इसके बाद मूनि कुमारसेन के विद्यानुहैं उनके नीचे चौबीस जिन शासन देवी हैं इनमे चार : २७ प्रार्कालाजीकल सर्वे प्राफ इडिया वार्षिक रिपोर्ट हाथ वाली यक्षिणी पद्मावती भी है।" अक्कनवस्ति १९२५-२६, पृ. १२५, फलक lvi-lvii, रिपोर्ट नाम का मन्दिर, जो श्रवण बेलगोल में है, का निर्माण १६३०-३४ पृ. १६५, फज्ञक cxxxvii व Ixviii; शक स० ११०३ है । उस मन्दिर के गर्भ गृह में पार्श्वनाथ रिपोर्ट १६३५-३६ फलक xvii; गाइड टू राजगिरहै तथा गर्भ गृह के दरवाजे के दोनो ओर धरणेद्र और कुरेशया और घोष। पद्मावती की करीबन तीन फुट ऊची मूर्तियाँ है । २८ मौलो फणि फणा: सप्त नय श्री भिः कराइव । चन्द्रगिरि पर्वत (मैसूर) पर कत्तलेवस्ति नामक मदिर के धृताः शांत रसास्वादे यस्य पार्श्वः स पातु वः ॥१२६ बरामदे मे पद्मावती की मूर्ति है।" अमरचद सूरि कृत पद्मानंद महाकाव्य । पदमा कुक्कुटस्था ख्याता पद्मावतीति चा। ३७। २६ मुनि कांतिसागर : खोज की पगडडियां, पृ. १६६ । अपराजिता पृच्छा २२१ । ३० जैन एन्टीक्वेरी, जि. १६, क्र. १ जून ५० पृ. २० । २१ भावदेव सूरि : पार्श्वनाथ स्तोत्र ८,७२८ । ३१ मुनि कातिसागर : खंडहरों का वैभव, पृ. ४०, पाद २२ मल्लिषेण सूरि : भैरव पदमावती कल्प परिशिष्ट ५, टिप्पणी १। श्लोक २.८, पृ. २६-२७ । ३२ जैन सिद्धांत भास्कर : भाग २० कि. २, दिसं. २३ हरिद्वर्णा सिंह सस्था द्वि भुजा च फलं वरं । ५३, पृ. ५१। पुत्रेणोपास्य माना च सुनोत्संगा तथाऽम्बिका ॥३६।। ३३ पादलिप्त सूरि : निर्वाणकलिका पृ. ३४, फतेह पंद अपराजिता पृच्छा मू. २२१ । वेलानी जैन ग्रंथ प्रौर ग्रंथकार, जैन सस्कृति मंडल २४ बनर्जी जे. एन. : जैन पाइकोनोग्राफी, क्लासीकलएज पृ. ४१४ विद्याभवन बंबई। वाराणसी, पृ. २ २५ जैन शिलालेख सग्रह प्रथम भाग, शिलालेख क, ३ र ३४ यतिवृषभः तिलोयपण्णति; ; प्र. भा. (४,६३६) पं. १२४, ३२७, पृ.४३, ४४ । जुगलकिशोर मुख्तार : पुरातन जैनवाक्य सूची २६ वही पृ. ५.६ । सरसावा; भूमिका पृ. ३४।

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