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२६० वर्ष २२ कि०६
अनेकान्त
प्रतसागर का समय विक्रम की १६वी शताब्दी है, अतः इन का भाष्य भारतीय ज्ञारपीठ से प्रकाशित हो चुका है। प्रमरकीति का समय भी १६वीं शताब्दी होना चाहिए। उस ग्रन्थ की पुष्पिका में उन्हें विद्य महा पण्डित और शब्द
सातवे अमरकीति वे है, जिनका उल्लेख दशभक्त्यादि वेधसी बतलाया है। भाष्य को देखने से वे विवध ग्रन्थों महाशास्त्र के रचयिता वर्षमान ने किया है। जो विद्या- के अभ्यासी ज्ञात होने है। मन्द के पुत्र विशालकीति के सधर्मा अमरकीति थे। जिन्हे 'इति महापण्डित श्रीमदमरकीतिना विद्येन श्री सेन्द्र शात्र कोविद विमलाशय, कामजेता, निर्मल गुण और धर्म वंशोत्पन्नेन शब्दवेधसा कृताया धनजय नाम मालायां के प्राश्रय तथा जिनमत के प्रकाशक बतलाया है। जैसा प्रथमकाण्ड व्याख्यातम् ।' कि ग्रन्थ के निम्न उद्धरण से स्पष्ट है
प्रस्तुत कोष ग्रन्थ का भाष्य लिखते हए अमरकीति ने जीयावमरकोाखभद्रारक शिरोमणिः ।
परम भट्टारक यशःकीति अमरसिंह, हलायुध, इन्द्रनन्दी, विशालकोति योगीन्द्र सधर्मा शास्त्र कोविदः॥
सोमदेव, सोमप्रभ, हेमचन्द्र और प्राशाधर आदि के नामों अमरकीति मुनि विमलाशयः कुसुमन्यायमदाचलवभत्। का उल्लेख करते हुए, महापुराण, सूक्तमुक्तावली, हमीजिनमतापहतारितमाश्च यो जयति निर्मल धर्म गुणाश्रयः॥ नाममाला यशस्तिलक. इन्द्रनन्दि का नीतिसार और पाशा
विशालकीर्ति के पिता विद्यानन्द का स्वर्गवास शक घर के महाभिषेक पाठ का नामोल्लेख किया है। इनमें सं० १४०५ सन् १४८१ मे हुआ था।
सोमप्रभ १२वीं, हेमचन्द्र १२-१३वी और पाशाधर ने पाठवें अमरकीति ऐन्द्र वंश के प्रसिद्ध विद्वान थे जो सं० १३०० मे अनगार धर्मामृत की टीका पूर्ण की है। 'विद्य' कहलाते थे। यह अपने समय के अच्छे विद्वान इससे भाष्यकार अमरकीति स. १३०० के बाद विद्वान जान पड़ते है। इनका बनाया हुआ धनंजय की नाममाला ठहरते है।
संस्कृत सुभाषितों में सज्जन-दुर्जन
लक्ष्मीचन्द्र जैन 'सरोज' एम. ए. साहित्यरत्न चूकि दुनिया दूरगी है, अतएव उसमे जहाँ दिन के सत्संग का और दुर्जनों से दूर रहने का भी भाव रहा। साथ रात है और फल के साथ शूल है, वहां वादी के साथ सज्जन-दुर्जन के वर्णन की भांति सुभाषितों का भी प्रयोग प्रतिवादी और पक्षी के साथ प्रतिपक्षी भी है। जहाँ काफी मात्रा में संस्कृत और हिन्दी के ग्रन्थो मे पाया मिलन के साथ विरह है और सुख के साथ दुःख है, वहाँ जाता है। पर सस्कृत ग्रन्थों के मुभाषित जितने सक्षिप्त शिष्ट के साथ प्रशिष्ट है और सज्जन के साथ दुर्जन भी सरल सहज ग्राह्य और भाव व्यजक तथा लोकप्रिय हुए है। यों दुनिया का नाम सार्थक है। कारण, उसमे पग- है, उतने हिन्दी ग्रन्थों के नहीं। वैसे कबीर की साखियाँ, पग पर दो नीति वाली वृत्ति लक्षित होती है।
तुलसी-रहीम-वन्द प्रादि के नीति मूलक दोहे भी जनता इतिहास, अर्थ और महत्व :
की जबान ने काफी कंठस्थ किये है। संस्कृत और हिन्दी के कतिपय महाकाव्यों में सज्जन- संस्कृत के सुभाषित शिष्ट-संयत-मुरुचिपूर्ण हैं। इस दुर्जन का वर्णन कुछ कवियो मे किया और उसमे लोक- लिए मि० वेकटाचलम् के शल्दों में 'पडित मडली' मे ऐसे संग्रह की भावमा जहाँ रही, वहाँ प्रकारान्तर से सज्जनों के असल्यास अज्ञात कवियों की सैकड़ों-हजारों फुटकर रच.