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अनेक स्थान नाम गभित भ. पाश्वनाथ के स्तवन
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शित की जा रही है उनमें एक अपूर्ण है, उसकी पूरी प्रति प्रादि सम्बन्धी महत्वपूर्ण सामग्री प्रकाशित हुई है। कहीं मिलने पर ही रचयिता एवं रचनाकाल का पता लग कई वर्ष पूर्व मुनि श्री ताराचन्दजी संपादित 'पाश्र्वासकता है । अधिकांश रचनाए खरतरगच्छोय विद्वाना का दर्श' नामक ग्रथ प्रकाशित हुआ था जिसमे श्री पाश्र्वनाथ हैं एवं हमारे संग्रह में विद्यमान हैं। ऐसे स्थान नामगर्भित मी
सम्बन्धी स्तुति स्तोत्र स्तवनादि का बड़ा संग्रह है।
म्नति स्तोत्र तनादि । जितनी भी रचनाए मिलती हों उन सबको सगृहीत कर सखेश्वर पार्श्वनाथादि एक-एक तीर्थ के स्तवनों का भी प्रकाशित कर देना चाहिए, यह प्रेरणा देने के लिए ही
सग्रह स्वतत्र रूप से निकले है । वर्षों से हमारे संग्रहीत रचनाओं को यहां प्रकाशित किया जाता है । मुनि राजश्री अभयसागरजी भ० पार्श्वनाथ के (श्री जिनभद्र सूरि विरचित) नामों की विस्तृत तालिका बना रहे है, उसके लिए भी अष्टोत्तर शत पाश्र्वनाथ स्तवनम् यह प्रयास उपयोगी सिद्ध होगा।
पणमवि पण परमिट्टि पाय पउमावय देवीय, १ अप्टोत्तर शत पार्श्वनाथ स्तवन
वयरुट्टा धरणिव पास जय विजया सेवी; गा. १५ जिनभद्रमूरि (१५वी) १६
ठाण ठाणट्टिय पासनाह हं जणमण मोहण, २ अट्टोत्तर पार्श्वनाथ स्तोत्र
समरिस समरिसु सामि माल अइसह मण रोहण ॥१ गा. ८ सुमतिसिन्धुर १७०३ ५८
सिरि वाणारसि नयर राजगृह नयर पचार, ३ अष्टोत्तर शत पार्श्व सूचक स्तवन
थाल नयर सिरि सिद्धखंत्र पर सिरि गिरिनारह; गा. १६ सुमतिसुन्दर १६६१ ८८
जीरावल फलवद्धि नागदह महिमा पूरीय, ४ अप्टोत्तर शत पाश्र्व स्थान स्तवन
करहेड़ई कलिकुंड पास सवि कलि मल परिय ॥२ गा. ६ सहजकीति (१७वी) ८११
प्रणहिलवाड नयरि सामि वसरुपई दीसह, ५ अट्ठोत्तरसय पार्श्वनाथ स्तवन गा.१६ समय राजोपाध्याय ,
थंभणपुर वर पंचरूप पह पास सलीजह; ६१३
मंगलपुरि मंगल निवास नव पल्लव नामिई, ६ ११७ नाम गभित पार्श्वनाथ स्तवन
चित्तह चोरण चित्रकोटि, चितामणि सामि ॥३ __ गा.१७ रत्नवर्द्धन
१७ ७ पार्श्वनाथ लघु स्तवन
॥वस्तु॥ ___गा. ६ रत्ननिधान , २० पास जिणवर पास जिणवर देवगिरि नयरि। ८ श्री पार्श्वनाथ स्तवन
सिरि सिरि पुरि पंच पुरि नगरकोटि नागरि गिरिपुरि। गा. १५ हरिकलस सूरि , २१ प्रज्जाहर राणपुरि अजयमेरि जावाल पुरवरि । ६ अष्टोत्तर शत पार्श्व स्तवन
जेसलमेरि हमीरपुरि हाल्हणपुरि चिहुरूप । गा. १३ क्षेमराज (१६वी) २५ कंभलमेरिह मंडपह पणमीजइ चिहरूप ॥४
॥ भास । गा. २१॥ अपूर्ण
संखेसर समेगिरि सिरि प्रससेण मल्हार । ११ पार्श्वनाथ भनेक तीर्थनाम स्तवन
पारासणि रावण सरण करिसु जिणेसर सार । गा.४ समय सुन्दर (१७वी) ३१ ।।
पालीताणइ पाप हर घोघापुर नवखंड । अभी-अभी श्री चापस्मा जैन संघ प्रकाशित "श्री सेरोसइ सोभागनिधि सामी पास प्रचार॥५ भटेवा पार्श्वनाथ जिनालय अर्घ शताब्दी स्मारक ग्रथ” चतुर्मुखि खरतर जिण भुषण परबुद गिरिवर गि। प्रकाशित हुमा है उसमें भ० पायर्वनाथ नामो, स्थानों, तिह भूमिट्ठिय पूजोयह नवफण सामी रंगि।
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