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अमरकीर्ति नाम के आठ विद्वान
परमानन्द जैन शास्त्री
जैन वाङमय का पालोडन करने से यह सुनिश्चित है। इनके समय का समर्थन संवत् १३०७ के एक शिलाजान पडना है कि एक नाम के अनेक विद्वान होते रहे है। लेख से भी होता है । उदाहरण के लिए अकलक, प्रभाचन्द और पद्मनन्दि तीसरे अमरकीति वे है जिनके शिष्य माघनन्दी प्रती प्रति के नाम विशेष उल्लेखनीय है। इन नामो के अनेक पौर शिष्य भोगराज सौदागर थे। भोगराज ने शक विद्वान विभिन्न समयो मे हा है। इसी तरह अमरकीति सं० १२७७ (वि० स० १४१२) मे शान्तिनाथ की प्रतिमा नाम के भी कई विद्वान दृष्टिगोचर होते है।
प्रतिष्ठित कराई थी। एक अमरकीति पट् कर्मोपदेश के कर्ता है जो भट्टारक चौथे अमरकीति-व है जो कलिकाल सर्वज्ञ धमचन्दकीति के शिष्य थे। अमरकीति ने महीयद देश के भूपण के शिष्य थे और जिनका उल्लेख शक स. १२६५ 'गोध्रा' नगर के चालुक्य वशीय कृष्ण (कण्ह) के राज्य का में लिखे गये श्रवण बेल्गोल के शिलालेख नं० १११ उल्लेख किया है। इसका कारण व गुजगतके निवामी जान (२७४) में पाया है। पडते है। यह माथुर सघ के विद्वान अमितगति द्वितीय की
पाचवे प्रमरकीर्ति वादी विद्यानन्द के शिष्य थे। परम्परा मे हुए है । यह अपभ्रंश भाषा के प्रौढ विद्वान थे।
जिनका उल्लेख शिलालेख न०४६ मे हमा है। इनका इनकी अपभ्रश भाषा की दो कृतियाँ उपलब्ध है। इन्होने
चा हा एक यमकाष्टक स्तोत्र अनेकान्त वर्ष १० कि० अपना नेमिनाथ पुराण स० १२४४ मे बना कर समाप्त
१ मे प्रकागित हुआ है। इस स्तोत्र के अन्त में कवि ने किया था। उसके तीन वर्ष बाद स० १२४७ मे षट्कर्मो
'देवागमाल कृति' नाम की रचना का भी उल्लेख किया पदेश की रचना हुई है। इसमे गृहस्थ के पट्कर्मो का
है। इस कृति की कोई उपलब्धि नहीं हुई जिससे उसके सुन्दर विवेचन दिया हुआ है। १४ सघी और २१५ कड़
सम्बन्ध में कुछ लिखा जा सके । मुख्तार श्री जुगलकिशोर वक है जिनकी श्लोक सख्या २०५० प्रमाण है। दशवी
जी ने इनका समय विक्रम की १६वीं शताब्दी बतलाया है। सधि में जिन पूजा पुरंदर विधि कथा दी हुई है। पुरदर विधान कथा, अलग रूप में भी उपलब्ध होती है। इनकी
छठवे अमरकोति भ० मल्लिभूषण के शिष्य थे। निम्न रचनाएँ-महावीर चरिउ, जसहर चरिउ, धर्म- मल्लिभूषण मालवा के पट्ट पर आसीन थे। इन्ही के समचरित टिप्पण, सुभाषित रत्ननिधि, धर्मोपदेश घूडामणि, कालीन विद्यानन्द पार श्रुतसागर थ । इन अमरकोति की झाण पईव नाम की रचनाएँ अनुपलब्ध है।
एक कृति जिन सहस्रनाम की सस्कृत टीका है, जो भट्टारक
विश्वसेन के द्वारा अनुमोदित है। चूकि मल्लिभूषण और दूसरे अमरकीति 'वर्धमान' के प्रगुरु थे। इनकी गुरु परम्परा देवेन्द्र, विशालकीति, शुभकीर्ति, धर्मभूषण, १ अध्येप्टाऽऽगम मध्यगोप्ट परम शब्द च युक्ति विदां । अमरकीर्ति, .... घर्मभूषण और वर्धमान । वर्धमान ने चक्रं यः परशील-वदि-मदभिद्दे वागालंकृतिम् ।। शक स० १२६५ बैशाख सुदी ३ बुधवार को धर्मभूषण
-अनेकान्त वर्ष १० कि० १, पृ. ३ की निषद्या बनवाई थी थी। इस शिलालेख के अनुसार २ मल्लिभूषण शिष्येण भारत्यानन्दनेन च । अमरकीति का समय शक सं० १२५० के पास-पास का सहस्रनामटीकेयं रचिताऽमरकीतिना ।। जान पड़ता है। इनका समय ईसा की १४वी शताब्दी
-जैन ग्रंथ प्रशस्ति संग्रह भा० १, पृ. १४६