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अनेकान्त
मेरे अवलोकन में भाई है। परन्तु अन्य रचनाओं का प्रभी हुए थे। कुमारसेन के शिष्य हेमचन्द्र थे और हेमचन्द्र के तक पता नहीं चला । इनका समय विक्रम की १६वीं और शिष्य पद्मनन्दि । पपनन्दि के शिष्य यश-कीति थे जिन्होंने १७वीं शताब्दी है।
सं० १५७२ मे केशरिया जी में सभा मण्डप बनवाया था। कमलकीति-हेमकीर्ति के पट्टधर थे। यह सं० इन यशःकीति के दो शिष्य थे गुणचन्द्र और क्षेमकीर्ति, १५०६ में पट्टधर थे, उस समय चन्द्रवाड में राजा राम- गुणचन्द्रका सम्बन्ध दिल्ली पट्ट परम्परा से है । चन्द्रदेव और उनके पुत्र युवराज प्रतापचन्द्र के समय
माथुरगच्छ के एक अन्य कमलकीति का उल्लेख कविवर रघु ने शान्तिनाथ की मूर्ति की प्रतिष्ठा की
मिलता है जिन्होने देवसेन के तत्त्वसार की एक संस्कृत थी। तब हेमकीति के पटटघर कमलकीर्ति प्रतिष्ठित थे।
टीका बनाई है, वे अमलकीर्ति के शिष्य थे। इन्होंने उस इनका समय भी विक्रम की १६वीं शताब्दी है ।
टीका की प्रशस्ति मे अपनी गुरु-परम्परा निम्न प्रकार बतइनके दो शिष्य थे शुभचन्द्र और कुमारसेन । उनमें लाई है। क्षेमकीर्ति, हेमकीति, संयमकीर्ति, अमलकीति शुभचन्द्र कमलकीर्ति के पट्ट पर सोनागिर में प्रतिष्ठित और कमलकीति'। हो सकता है कि ये दोनों कमलकीति हुए थे। और कुमारसेन भानुकीति के पट्ट पर आसीन एक हों। कारण कि सं० १५२५ के मूर्तिलेख मे जो कवि१. देखो जैन ग्रन्थ प्रशस्तिसंग्रह भा० २ १० १११
वर रइघ द्वारा प्रतिष्ठित है । उसमें भ० अमलकीति और की टिप्पणी।
उनके बाद शुभचन्द्र का उल्लेख है। और यह भी हो २. सिरि-कंजकित्ति-पटेंबरेसु,
सकता है कि दोनों कमलकीति भिन्न ही हों, क्योंकि दोनों
के गुरु भिन्न-भिन्न है और वह भी सम्भव है कि एक ही तच्चत्थ-सत्य भासण दिणेसु ।
विद्वान के दीक्षा और शिक्षा गुरु के भेद से दो विद्वान उदइय-मिच्छत्त तमोह-णासु,
गुरु रहे हों। कुछ भी हो, इस संबंध में अन्वेषण करना सुहचन्द भडारउ सुजस-वासु ॥
अत्यन्त आवश्यक है। -हरिवंश पुराण प्रशस्ति तत्पट्टमुच्चमुदयाद्रि मिवानुभानुः,
कुमारसेन'-भान कीर्ति के शिष्य थे। स्याद्वाद रूप
निर्दोष विद्या के द्वारा वादीरूपी गजों के कुभस्थल के श्रीभानुकीर्तिरिह भाति हतांधकारः ।
विदारक थे। सम्यक दर्शन, सम्यग्ज्ञान और सम्यक चारित्र उद्योतयन्निखिल सूक्ष्मपदार्थसार्यान्,
के धारक थे। कामदेव के जीतने वाले तथा महाव्रतों का भट्टारको भुवनपालक पनबन्धुः ॥६॥
पाचरण करने वाले थे। अच्छे विद्वान तपस्वी और जन-जम्बूस्वामि चरित पृ०८
कल्याण करने मे सदा तत्पर रहते थे। इसीसे पांडे राजहेमकीर्ति दिल्ली के भट्टारक प्रभाचन्द्र के प्रशिष्य
मल जी ने उनकी विजय कामना की है। मौर शुभचन्द्र के शिष्य थे। ये वही हेमकीर्ति ज्ञात होते है जिनका उल्लेख सं० १४६५ के विजो- ३. तत्पट्टमब्धिमभिवर्द्धनहेतुरिन्द्रः, लिया में उत्कीर्ण शिलालेख में हमा है। इससे इनका
सौम्यः सदोदयमयोलसदंशुजालैः । समय विक्रम की १५वीं शताब्दी है।
ब्रह्मव्रताचरणनिजितमारसेनो, शिष्येऽय शुभचन्द्रस्य हेमकीति महासुधीः ।
भट्टारकोविजयतेऽथकुमारसेनः ॥६३।। देखो अनेकान्त वर्ष ११ कि० १०, पृ० ३६ ।
-जम्बस्वामी चरित पृ०८ चेतन चित परिचय विना, जप तप सबै निरत्थ । कण बिन तुव जिम फटकत, कछु न प्राव हत्थ । चेतन चित परिचय बिना कहा भये व्रत धार । शालि विहूने खेत की, वृथा बनावत वार ॥