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२६२, २२ कि० ५
हैं, किन्तु इष्ट में परिवर्तन उसे मान्य नहीं । कवि के काव्य के विषय मे जो सत्य है, जो तथ्य है, वर्ण्य है, उल्लेख है वह सब प्रचुर मात्रा में 'चिदम्बरा' में सर्वत्र बिखरा हुआ है। भाव और कर्म मे साम्य स्थापित करने का कवि प्रयास इसमे पूर्णतः परिलक्षित होता है । भारतीय ज्ञानपीठ की अध्यक्षा, श्रीमती रमा जैन ने मान्य अतिथियों का स्वागत करते हुए ज्ञानपीठ द्वारा ''चिदम्बरा' के 'अंग्रेजी, कन्नड, गुजराती, तेलुगु, बंगला, मलयाली और मराठी अनुवादों के प्रकाशन की घोषणा की । भारतीय साहित्य के मंगल में ऐसे प्रयासों की उपा देयता की चर्चा करते हुए उन्होंने कहा : भारतीय साहित्य हमारी सामूहिक पूंजी है। वह बाटने से ही अधिक बढ़ती है । उसका प्रादान-प्रदान हमारे व्यक्तित्व को परिपूर्ण, हमारी सामाजिक चेतना को उदार भोर राष्ट्रीय भावना को सुदृढ़ करता है ।
भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक - न्यासधारी श्री शान्तिप्रसाद जैन ने सभी अभ्यागतों के प्रति प्राभार व्यक्त किया।
धनेकान्त
पुरस्कार - समर्पण समारोह के कार्यक्रम का एक विशेष कर्षण - अंग था । 'चिदम्बरा' की रचनाओं पर श्राधारित एक नृत्य प्रतिबिम्ब जिसे उदयशंकर इंडिया कल्चर सेण्टर के कलाकारों ने श्रीमती अमला शकर के निर्देशन मे प्रस्तुत किया । 'चिदम्बरा' की रचनाओंों के विचार
(१) भागम और त्रिपिटक -- एक अनुशीलन खण्ड १ इतिहास और परम्परा लेखक- मुनि श्री नागराज जी डी० लिट् । प्रकाशक जैन श्वेताम्बर तेरापन्थी महासभा, ३ पोर्चुगीज, चर्चस्ट्रीट कलकत्ता-१, पृष्ठ संख्या ७६८ मूल्य २५) रुपया |
भावनागत तथ्य के प्राधार पर शैली एवं भाव मुद्राद्यों के वैविध्य से सम्पन्न नृत्य प्रतिबिम्ब प्रस्तुत करना श्रीमती अमला शंकर की सूक्ष्म कला काव्य दृष्टि का परिचायक है ।
मंच पर डा० कर्णसिंह, डा० नीहार रंजन रे, श्री गो० शंकर कुरुप प्रादि प्रवर-परिषद् के सदस्य और भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट तथा संचालक समिति के सदस्यगण भी उपस्थित थे ।
साहित्य-समोक्षा
प्रस्तुत ग्रंथ एक ऐतिहासिक अनुसन्धान परम्परा का सूचक है। ग्रंथ में मुनि जी ने बौद्ध पिटकों और जैन भागम-ग्रन्थों की जो तुलनात्मक रूप प्रस्तुत किया है,
पुरस्कार समर्पण समारोह का एक रोचक अंग थी विज्ञान भवन की दीर्घा मे प्रायोजित पुस्तक प्रदर्शनी, जिसमें भारतीय ज्ञानपीठ के लगभग चार सौ प्रकाशन प्रदर्शित थे। इनमें प्राच्यविद्या विषयक विभिन्न शोधग्रन्थभी थे और विभिन्न साहित्यिक विधाओं के साहित्यिक प्रकाशन भी । इस प्रकार भारतीय ज्ञानपीठ की सभी ग्रंथमालाओं - मूर्तिदेवी ग्रंथमाला, माणिकचन्द्र ग्रंथमाला, कन्नड ग्रंथमाला और लोकोदय ग्रंथमाला जिसके प्रतर्गत राष्ट्रभारती ग्रन्थमाला भी भाती है-की एक भरी-पूरी छवि वहाँ प्रस्तुत थी ।
पिछले तीन पुरस्कार समर्पण समारोहों का चित्रदर्शन वहाँ का एक अतिरिक्त श्राकर्षण था । श्री सुमित्रा नन्द पंथ की पुरस्कृत काव्यकृति 'चिदम्बरा' के अंग्रेजी, बांग्ला, कन्नड़, गुजराती, मराठी, मलयाली भौर तेलुगु भाषात्रों में काव्यानुवाद भी वहां विशेष रूप से प्रदर्शित किये गये थे ।
उससे कितने ही नवीन तथ्य प्रकाश में प्राये हैं। उनसे भलीभाँति निश्चित हो जाता है कि महावीर का जीवन परिचय लिखते समय बौद्ध ग्रंथों का अध्ययन होना प्रावश्यक है । यद्यपि बोद्ध ग्रंथों में महावीर के जीवन संबंधी कोई मौलिक घटना का उल्लेख नहीं है, जो कुछ लिखा गया है वह सब महावीर के महत्व पर पर्दा डालने या उसे हीन बतलाने का उपक्रम किया गया है। महावीर क्या थे और उन्होंने जीवन में क्या प्रादर्श उपस्थित किये,