Book Title: Anekant 1969 Book 22 Ank 01 to 06
Author(s): A N Upadhye
Publisher: Veer Seva Mandir Trust

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Page 278
________________ ज्ञानपीठ साहित्य पुरस्कार इस वर्ष वरि कवि श्री सुमित्रानन्दन पंत को समर्पित २६१ पीछे एक सार्वभौम व्यक्तित्वका प्रकाशमण्डल चिपका दिया गया हो। अपने नये विकासक्रम में मानव चेतना पिछले देश कालगत प्रादर्शों के सम्मोहन से मुक्त होकर एक नवीन मानवीय विश्व व्यक्तित्व के सौष्ठव से मण्डित होने जा रही है धौर विगत युगों के धर्म-नीति स्वर्ग-नरक, पाप-पुण्य, इहलोक - परलोक की धारणानों को प्रतिक्रम कर, जीवन-मूल्यों को नई दिशा देकर अपने सम्पूर्ण रचनात्मक ऐश्वर्य में अवतरित हो रही है। श्री पंत के अनुसार कवि का सत्य दर्शन तभी माना है जब यह समकालीन जीवन तथ्यों पर आधारित हो । उन्होंने कहा समस्त सत्य घरा केन्द्रिक प्रथच मानव केन्द्रिक है । इसलिए हमें विज्ञान और अध्यात्म दोनों ही परातलों के दृष्टि वैभव को नवीन मानव के निर्माण तथा विकास के लिए प्रयुक्त करना चाहिए कि वह भविष्य में इन देशों-राष्ट्रों की सीमाओं से उभरी हुई परती पर एक नवीन सांस्कृतिक एकता का अनुभव अपने भीतर कर सकें-सांस्कृतिक एकता जो उसकी ईश्वरीय अथवा आध्यात्मिक एकता की भी प्रतिनिधि बन सके । कला में रूप और चेतना का संयोजनदर्शन में गुण और राशि का सयोजन रचनाकर्म में विज्ञान और अध्यात्म का सयोजन - ये तीनों प्राज के युग की व्यापक आवश्यकता के प्रमुख तत्व है । कविकर्म के लिए सृजनात्मक तथा कलात्मक ही न रहकर नई चेतना की दिशा मे चिन्तनात्मक तथा निर्माणात्मक भी रहा। कवि-दृष्टि मानव जीवन को सौन्दर्य तथा रस कीं सम्पद् से संजोनें एवं सम्पन्न करने के लिए प्रकाश तथा अन्धकार दोनों ही शक्तियों के सत्यों का महत्व समझती - है । महामहिम राष्ट्रपतिजी ने कवि श्रीपंत को साहित्यिक उपलब्धियों की सराहना करते हुए कहा माज की सी नैति कता सकट की स्थिति में केवल लेखक और साहित्यकार ही निरपेक्ष दृष्टि से समस्याओं और स्थितियों को परख सकते है और अभीष्ट मार्ग दिखा सकते है जैसा कवि श्रीपत ने किया है। हम माज चरित्र के सकटका धारणाके संकट का सामना कर रहे हैं । यह सरस्वती पुत्रों का कर्त्तव्य है कि वे नये मूल्यों और सिद्धातों की स्थापना करें। हम भौतिक सम्पन्नता की प्राप्ति के महान् प्रयास में लगे हुए है, साथ-साथ हमारे लिए यह भी आवश्यक है कि हम अपने पारस्परिक व्यवहार के मानदंडों को भी ऊंचा रखें। लेखकों का यह कर्तव्य है कि साहित्य की साधना के द्वारा वे जीवन को ऊंचा उठायें। मुझे पूरा विश्वास है कि हमारे लेखक इस आवश्यकता की पूर्ति में कोई कसर नहीं रखेगे और उस चुनौती का डटकर सामना करेगे । श्री गिरि ने भारतीय ज्ञानपीठ को इस पुरस्कार का प्रचलन करने के लिए बधाई दी जो भारत की एकता का प्रतीक बन गया है। सभी भारतीय भाषों में से एक उत्कृष्ट पुस्तक का चयन करना कोई आसान कार्य नहीं है, परन्तु ज्ञानपीठ ने पिछले चार वर्षों से इस कार्य को बड़ी सफलता के साथ सम्पन्न किया है। राष्ट्रपति जी ने कहा साहित्यकार ही राष्ट्रीय चेतना के आधार है। वर्तमान परिस्थिति में जबकि चारों ओर साम्प्रदायिक वैमनस्य की भावना और धनुशासन हीनता का बोल बाला है, यह आवश्यक है कि साहित्यिक कृतियों के प्रणेता राष्ट्रीय एकता के ध्येय को अपने समक्ष रखें और अनुशासन, समर्पण और सत्य को अनवरत खोज का वाता वरण पैदा करें। उन्हें प्रजातन्त्र की शक्तियों को बल देना है और एक ऐसे बायुमंडल की सृष्टि करनी है जो राष्ट्रीय विकास में सहायक हो । पुरस्कार विजेता कवि श्रीसुमित्रानन्दन पंत ने एक कवि की सत्यनिष्ठा और द्रष्टा की दूरगामी भावदृष्टिसे अनुप्राणित स्वरों में मानवता के समक्ष उपस्थित दिभ्रान्ति की घोर सकेत करते हुए कहा हम पिछले नाम रूपों में परिणत जिस सत्य से परिचित है वह कितना ही महान् हो, भविष्य के नाम का सत्य नहीं हो सकता, भले ही उसके ज्ञानपीठ प्रवर परिषद के अध्यक्ष, उत्तर प्रदेश के राज्यपाल डा० बे० गोपाल रेड्डी तथा प्रवर परिषद के सदस्य दिल्ली के उपराज्यपाल डा० प्रा० ना० झा ने भी भारतीय साहित्य को श्री समृद्ध करने के लिए कवि पंत का अभिनन्दन किया। डा० रेड्डी के शब्दों में विभिन्न भावनाओं, अनुभूतियों, उद्गारों, प्रादेशों और अपेक्षाओं की मोहक संजूषा 'चिदम्बरा' में मानवतावाद का स्वर सबंध मुखर होता है। मानव-मगल उसका इष्ट है और भाव दर्शन उसका प्रसाधन बदलने के लिए सबंब तत्पर

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