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२६८, वर्ष २२ कि०६
अनेकान्त
हैं। जब कि ब्राह्मण लोग अपने कसर यज्ञीय विज्ञान का रोमानी और काल्पनिक तत्त्वों के होते हुए भी, बहुत अनुसरण कर रहे थे, अन्य वर्ग उन उत्कृष्टतम प्रश्नों के सम्भव है कि, महाकाव्य का गौरव और विशालता निराकरण में पहले से ही लग गये थे कि जिनका अवशेष ही प्राप्त हो गई होगी। दोनों महाकाव्यो की यह वृद्धि में ही उपनिषदों में इतना शुण्ठ विचार किया गया है। अपने में ही एक समस्या है और इनके सूक्ष्मदर्शी शोधक इन वर्गों में से कि जिनका ब्राह्मणों से मूलतः कोई भी बड़े अच्छे परिणामों पर पहुँच चुके है। सम्बन्ध नहीं था, ऐसे वनवासी और भ्रमणशील तप- कुरु शाखा के सिद्धों की वीर कथा ही महाभारत स्वियों का उदभव हुमा कि जिनने न केवल समार और का मूल बीज है और इसमें कौरव महायुद्ध का विशेष उसकी मासक्ति का ही त्याग कर दिया था, अपितु रूप से वर्णन किया गया है। परन्तु इस सांसारिक घटना ब्राह्मणों द्वारा किये जानेवाले यज्ञों और अनुष्ठानों से भी पर विश्वकोशीय साहित्य की ऐसी महान् उपरि-संरचना वे एकदम पृथक रहते थे। ब्राह्मणवाद के विरोधी अनेक
चढा दी गई है कि जिसमे विभिन्न प्रादर्शों और युगों के सम्प्रदाय इन्हीं वर्गों में से बन गये थे और इन्ही सम्प्रदायो स्पष्ट दर्शन दीख पड़ते है। इस अपार सामग्री में ईशमें का एक बौद्ध-सम्प्रदाय इतनी बडी ख्याति को पहुँच ब्रह्माण्ड विषयक धार्मिक कथाए है, तो स्वतंत्र कहानियाँ गया था। उपनिषद स्तर के साहित्य, विशेषतया । भी, जैसाकि कर्ण की जन्म कथा, ब्राह्मणों को दान देकर प्राचीनतम, में हमें कुछ बड़े ही मनोरंजक वर्णन जैसे कि युधिष्ठिर-पाप-मोचन की कथा, और यादव-वश-नाश की गार्गी और याज्ञवल्य का वाद-विवाद, सत्यकाम जाबाल कथा । इसमे धार्मिक-दार्शनिक और नैतिक विभाग भी की कथा और प्रवाहण एवम् अश्वपति जैसे क्षत्रियो की है जिसमे राजतत्र और सामाजिक व्यवहार के अनेक घटना, मिलते हैं। इनमें से कुछ तो प्राचीन भारत के सारसत्य है । इसमे रूपकथाएं, दृष्टान्तकथाएँ और प्रोपबौद्धिक काल के रूप में स्मरण रखने योग्य हैं।
देशिक वर्णक भी है। अवशेष इसमे वैरागी कविता भी वेदोत्तर कालीन भारतीय साहित्य के वर्णको की बहुत कुछ है। सारा का सारा ग्रंथ, क्या अंशो में और तीन महान सरितानों ने सूक्ष्मदर्शी विद्वानो का ध्यान क्या समस्त रूप मे ही, अब तक अनेक सम्पादकों के हाथ अच्छी तरह से प्राकर्षित कर लिया है । वे सरिताएं है :- से निकला हुअा है; और इसलिए, विसंगत एवम् परस्पर बृहत्कथा, महाभारत पोर रामायण। इनमें से पहली विरोधी होने के उपरांत भी, उसके मूल पाठ में सभी पेशाची प्राकृत में है और पीछे की दोनों संस्कृत मे। प्रकार के विषय प्रविष्ट है। महाभारत का पाठ, जैसा गुणाढ्य की बृहत्कथा माज मूल रूप में न तो प्राप्य है कि आज मिलता है, समर्थ विद्वानो के मतानुसार, अत्यन्त और न उसके कभी मिलने की ही कोई माशा है । संस्कृत सुदृढ और असंदिग्ध भार्गव प्रभाव में वर्तमान रूप पाया भाषा में भी उसके संक्षेप तीन ही मिले है। पक्षान्तर मे हा है। इसके पहले और पीछे भी इसके पाठ पर इसी महाभारत पोर रामायण के मूल बीज का जो कि उनके । प्रकार के अनेक साम्प्रदायिक प्रयत्न होते रहे होंगे। मूल लेखकों ने मूलतः प्रस्तुतः किया था, पता लगाना मी कथानक से विशेष सम्बन्ध नही होते हुए भी इसमे अनेक लगभग असम्भव है, हालांकि सूक्ष्मदर्शी विद्वानो द्वारा छोटे और बड़े पाख्यान बस जोड़ दिए गए हैं। जो भी ऐसे प्रयत्न निरन्तर किए जा रहे है, क्योंकि इनके प्राप्य हो, महाभारत सभी प्रकार के वर्णकों का एक महान पाठ, भारत के विभिन्न भागों में सदियों से लगातार संग्रह है और इसने उत्तरकालीन लेखकों को अपने विषयअपने-अपने दृष्टिकोण से कार्यरत चतुर मतविस्तारक- निर्वाचन मे बहुत ही प्रभवित किया है। सम्पादकों द्वारा किए गए प्रक्षेपों से, बहुत ही विस्तार
पापक्षान्तर मे महाभारत जितने विविध विषय रामायण गए हैं। इन्हें महाकाव्य तो न जाने कब से कहा - -
२. वी. एस. सुखठकर दी भृगुज एण्ड दी भारत, जाने लगा है । मोर बृहत्कथा को भी, उसमे र
मनाल्स प्राफ दी विहार उडीसा रिसर्च सोसाइटी १. ए हिस्ट्री माफ इडियन लिटरेचर भा. १ पृ. २३१ पत्रिका भा. १८ खण्ड १ पृ. १-७६ ।