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२५४, पर्व २२ कि.५
अनेकान्त
पृष्ठीय वैमासिकी 'भनेकान्त' का ४० वर्ष का जीवन , (२) उसके २१२ अंक (किरणें) प्रकाशित हुए, १६८ दरअसल जैन समाज के पुननिर्माण की एक षटनापूर्ण मासिक मोर ४४ वैमासिक । कहानी है जिसका लिखा जाना माज भी बहुत बाकी है। (३) इनमें महात्मा गांधी, श्रीमद् रायचन्द्र, स्वनामधन्य पुननिर्माण के दौरान प्रतिक्रियावादी मोर उदासीनतावादी गणेशप्रसाद वर्णी, सर्वश्री काका कालेलकर, जैनेन्द्रजी मादि तत्वों ने जिन चीजों पर कुठाराघात किया उनमें एक २७ लेखकों ने २१५ रचनाएं प्रस्तुत की। 'भनेकान्त' भी हैं। यही कारण है कि ४० वर्षों के जीवन (४) विषयक्रम से रचनामों की संख्या है : में यह पत्रिका २१ वर्ष चार माह ही सक्रिय रह सकी। (१) सिद्धान्त (धर्म, दर्शन, न्याय, व्याकरण): ३६२ २४५६ वी० सं० (१९२६ ई.) में समन्तभद्राश्रम (वीर
(२) साहित्य : ५०३ सेवा मन्दिर), दिल्ली से स्व. जुगलकिशोर मुख्तार के
(३) पुरातत्व (इतिहास, संस्कृति, स्थापत्य, कला): नेतृत्व में प्रथम बार प्रकाशित 'भनेकान्त' एक वर्ष तक
४६१, प्रतिमाह माया और मार्थिक संकट में उलझकर, सरसावा
(४) समीक्षा : ७६, (उ.प्र.) में स्थानान्तर के बावजूद पाठ वर्ष तक
(५) कहानी : ५०, निष्क्रिय पड़ा रहा । स्व० बाबू छोटे लालजी स्व. लाला
(६) कविता : १२७, तमसुखराय जैन प्रादि के पार्थिक संपोषण से १-११
(७) व्यक्तिगत (परिचय, अभिनन्दन, श्रद्धांजलि १९३८ को फिर चल पड़े, 'भनेकान्त' को सात वर्ष बाद
मादि) : १६१, फिर लड़खड़ाता देख भारतीय ज्ञानपीठ, काशी ने एक
() सामयिक : ३०४, वर्ष संचालित किया। पांच माह में कुछ शक्ति संचय करके
(६) विविध : १३५, बह जुलाई' ४८ से चला ही था कि पुन: दिल्ली लाये
(१०) संकलन : १६३, जाने के बावजूद उसे पार्थिक संकट ने लगभग दो वर्ष
(५) वर्षक्रम से रचनात्रों की संख्या है : १:१५१% को रोक दिया । मौर, इसी तरह रुकता-चलता 'भनेकांत'
२:१७६; ३:१५३; ४:१६५; ५: १०३; ६ : जुलाई, ५७ तक, जीवन के २८ वर्ष में सिर्फ १४ वर्ष
१७१; ७ : ६६; ८ : १०६ : १०६; १०:६५; सक्रिय रहकर लगभग पांच वर्ष को निष्क्रिय हो गया।
११ : १२६; १२:१४, १३ : १०८; १४ : १०६% अप्रैल' ६२ से, समन्तभद्राश्रम (वीरसेवा मन्दिर), दिल्ली
१५:७३१६ : ५७; १७ : ६५; १८ : ७३; १६: से ही यह पत्रिका द्वैमासिकी के रूप मे पुनः प्रकाशित
११०; २०:५४, २१:८५; २२ : (दो प्रक): २८ होती मा रही है।
(६) कुछ लेखकों की रचना संख्या उल्लेखनीय है : कुछ पाकरे, कुछ नतीजे
पं० परमानन्द शास्त्री : २२५, प्रा. जुगलकिशोर मुस्तार : प्रस्तुत पंक 'अनेकान्त' का विशेष रूप से संग्रहणीय
१०४, श्री भगवत् स्वरूप भगवत् : ७७, श्री भगरचन्द्र मक होगा। कुछ दिन पहले, 'अनेकान्त' के प्राणाधार पं. परमानन्द शास्त्री को मैंने सुझाव दिया था कि वे
नाहटा : ६७, डॉ. दरबारीलाल कोठिया : ६१, श्री
अयोध्या प्रसाद गोयलीय : ३६, डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन : पत्रिका में अब तक प्रकाशित रचनामों की भोर उनके लेखकों की वर्गीकृत सूचियां प्रकाशित करें, जिसे अपनी
३४, पं० हीरालाल सिद्धान्तशास्त्री : ३३, पं० नाथूराम
प्रेमी: ३२। समिति से मंजूर कराकर उन्होंने उसका उत्तरदायित्व
(७) कुल २२६० में से सिद्धांत, साहित्य और पुरातत्व मुझे ही सौंप दिया। दोनों 'सूचियों के माधार पर कुछ पर ३०० रचनाएं है। शेष 880 में सभी रचनाएँ माकड़े और नतीजे प्रस्तुत हैं।
लघुकाय हैं। इससे सिद्ध होता है कि 'भनेकान्त' में दो (१) लगभग ४० वर्ष के जीवन में 'भनेकान्त' २१ वर्ष तिहाई से अधिक सामग्री सिद्धान्त, साहित्य पोर पुरातत्व. र माह सक्रिय रहा। '
पर प्रकाशित होती है।
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