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अनेकान्त
श्रीचन्द नाम के तीन विद्वान ७, ९-१०, पृ. १०७
४. श्रीपात्र केसरी और विद्यानन्द को एक समझने रामचन्द्र छाबड़ा वर्ष १३-१०-२५६
की भारी भूल का सप्रमाण निरसन । भगवती पाराधना और शिवकोटि २.६.३७१
५. गोम्मटसार की त्रुटि पूर्ति, रत्नकरण्ड का कर्तृत्व अपराजित सरि और विजयोदया वर्ष २ कि. ६ पृ. ३७१ और तिलोयपण्णत्ती की प्राचीनता विषयक विवादों का अपभ्रंश भाषा का जैनकथा साहित्य ८, ६/७, २७३
प्रबल युक्तियों द्वारा शान्तिकरण । दिल्ली और दिल्ली की राजाबली ८, २, ७१
६. दिल्ली के तोमरवंशी तृतीय अनगपाल की खोज, धर्मरत्नाकर और जयसेन नाम के प्राचार्य ८.२००
जिससे इतिहास की कितनी ही भूल-भ्रान्तिया दूर हो महाकवि सिंह और प्रद्युम्न चरित ८, १०/११ पृ० ३८६ जाती है। श्रीघर और विबुध श्रीधर नाम के विद्वान ८, १२, ४६२
७. गहरे अनुसन्धान द्वारा यह प्रमाणित किया जाना चतुर्थ वाग्भट और उनकी कृतियाँ वर्ष ६, कि. २, पृ. ७७ कि सन्मतिसूत्र के कर्ता प्राचार्य सिद्धसेन दिगंबर थे तथा ब्रह्म श्रुतसागर का समय और साहित्य ६, ११/१२, ४७४
सन्मति सूत्र न्यायावतार और द्वात्रिन्शिकामो के कर्ता एक अपभ्रश भाषा के दो महाकाव्य और नयनन्दी १०-३१३
ही सिद्धसेन नही, तीन या तीन से अधिक है । साथ ही ग्वालियर किले का इतिहास और जैन पुरातत्व १०,३,१०१
उपलब्ध २१ द्वात्रिन्शिकागो के कर्ता भी एक ही सिद्धसेन पं० दौलतराम और उनकी रचनाए १०-१.६
नही है। प्राचार्य कल्प प० टोडरमल जी ६, १, २५
८. इतिहास की दूसरी सैकडों बातो का उद्घाटन पांडे रूपचन्द और उनका साहित्य १०, २, ७५
और समयादि विषयक अनेक उलझी हुई गुत्थियो का महाकविरइधू १०, १०, ३७७, ११, ७/८, २६५ सुलझाया जाना। कविवर ५० दौलतरामजी ११, ३, २५२
६. लाकोपयोगी महत्व के नवसाहित्य का सर्जन भगवान महावीर और उनका सर्वोदयतीर्थ ११, १, ५५ और प्रकाशन जिसमे सोलह ग्रथो की खोजपूर्ण प्रस्तावनाये,
आदिनाथ मन्दिर और कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद, नवभारत २० ग्रंथो का हिन्दी अनुवाद और लगभग तीन सौ लेखों विजोलिया के शिलालेख ११, ११-३५६
का लिखा जाना भी शामिल है। नागकुमार चरित और कवि धर्मधर १३-६-२२७
१०. अनेकान्त मासिक द्वारा जनतामे विवेकको जाग्रत १० दीपचन्द शाह और उनकी रचनाएं १३, कि. ४, १३ करके उसके प्राचार-विचारको ऊंचा उठाने का सत्प्रयत्न । प. जयचन्द और उनकी साहित्य-सेवा १३-१६६
११. धवल, जयधवल, और महाधवल (महाबन्ध) अहिंसातत्व वर्ष १३, कि. ३, पृ. ६०
जैसे प्राचीन सिद्धान्त-ग्रथों की ताइपत्रीय प्रतियो काकविवर भगवतीदास वर्ष १४, ८, २२७
जो मडवद्री के जैन-मन्दिर में सात तालो के भीतर बन्द इस प्रकार अनेकान्त ने जैन साहित्य और सस्कृत की रहती थी-फोटो लिया जाना और जीर्णोद्धार के लिए, अभतपूर्व सेवा की है। जुलाई, १९५४ के अत में वीर- उनके दिल्ली बुलाने का प्रायोजन करके सबके लिए दर्शसेवामन्दिर की सेवायो का उल्लेख किया गया है. जो नादि का मार्ग सुलभ करना। इस प्रकार है .
१२. जैन लक्षणावली (लक्षणात्मक जैन पारिभाषिक १. वीर शासन जयन्ती जैसे पावन पर्व का उद्धार शब्दकोष), जैन-ग्रंथों की वृहत् सूची और समन्तभद्र और प्रचार।
भारती कोषादि के निर्माण का समारंभ । साथ ही पुरातन २ स्वामी समन्तभद्र के एक प्रश्रुत-पूर्व अपूर्व-परि
जैन वाक्य सूची प्रादि २१ ग्रथों का प्रकाशन । चय-पद्य की नवीन खोज।
३. लुप्तप्राय जैन साहित्य की खोज मे सस्कृत, प्राकृत १९५४ के बाद अब तक अनेकान्त और वीर सेवा अपभ्रंश और हिन्दी के लगभग दो सौ ग्रन्थों का अनुसघान मन्दिर द्वारा उक्त उद्देश्यों की पूर्ति में और भी विशिष्टता तथा परिचय प्रदान । दूसरे भी कितने ही प्रथों तथा ग्रन्थ- आई है। इसमें श्री पं० परमानन्द जी शास्त्री का सहयोग कारों का परिचय लेखन ।
प्रशंसनीय और साधुवादाह रहा है।