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भगवान महावीर का २५सौवां निर्वाण दिवस
पं० परमानन्द शास्त्री
ससार के प्रसिद्ध महापुरुषों मे भगवान महावीर का हैं, कोई भी मरना नहीं चाहता, सभी जीव अभ्युदय के स्थान सर्वोपरि है। उन्होंने जन कल्याण का जो महत्वपूर्ण पात्र है, सबको अपने प्रात्मीय कुटुम्ब की तरह मानना, कार्य किया वह उनकी महत्ता का स्पष्ट द्योतक है। उनसे प्रेम और समानता का व्यवहार करना सच्ची महावीर ने देश में फैले हुए सकुचित वातावरण को समु- मानवता है। न्नत बनाया, और विचारों में प्रौदार्य लाने के लिए अने
ऐसे महान उपकारी परमसन्त की निर्वाण शताब्दी कान्त जैसे सिद्धान्त का प्रचार व प्रसार किया, ऊँच-नीच
मनाना अत्यन्त आवश्यक है। जन साधारण में उनकी की भावना का निरसन किया, और जगत को अध्यात्म का
अहिंसा और उनके सदुपदेशो का प्रचार करना, उन्हे वह सन्देश दिया जिससे जनता अपनी भूल को जानने मे जीवन मे जताना प्रत्येक मानव का कर्तव्य है। समर्थ हो सकी। और आत्म-साधना का जो मार्ग कुठित सा
जैन समाज का कर्तव्य है कि भगवान महावीर की हो गया था उसमे नवजीवन का संचार किया। देश काल
२५ सौवी निर्वाण शताब्दी को संगठितरूप में प्रेम से की उस विपम परिस्थिति में जबकि जनता अधर्म को धर्म
मनाने के लिए दृढ प्रतिज्ञ रहे। श्रीमती इदिरा गान्धी का रूप मान रही थी, यज्ञादि क्रियाकाण्डो में जीव हिसा
प्रधानमत्री भारत सरकार की अध्यक्षता मे जो रूप-रेखा का प्रचार हो रहा था, पशुओ के आर्तनाद से भूमण्डल ।
१३ दिसम्बर को अहिंसा भवन शकर रोड में बनाई गई हिल रहा था। स्त्रियो और शूद्रों को धर्मसेवन का कोई
है उसे पल्लवित कर देश और विदेश के विद्वानो और अधिकार न था। विलविलाट करता हुआ पशुकुल 'हो
महापुरुपो को सम्मिलित कर उसे विशाल अन्तर्राष्ट्रीय कोई अवतार नया' की रट लगा रहा था। ऐसी विषम
रूप देना चाहिए। उसमे सभी का सहयोग वाछनीय है, परिस्थिति में महावीर ने भर जवानी मे राजकीय वैभव
साम्प्रदायिक व्यामोह से दूर रहकर जनता में महावीर के का परित्याग किया । और द्वादश वर्ष की कठोर तपश्चर्या
सिद्धान्तो को प्रचार करने का उपक्रम करना चाहिए। द्वारा प्रात्म-साधना की। और केवलज्ञान (पूर्णज्ञान) मनि श्री सुशील कुमार जी इस पुनीत कार्य में सलग्न प्राप्त कर ३० वर्ष तक विविध देशो और नगरो मे बिहार है। महावीर का असाम्प्रदायिक जीवन परिचय और उनके कर धर्मोपदेश द्वारा लोक का कल्याण किया । जनता सिद्धान्तो का सक्षिप्त मौलिक रूप को विविध भाषाओं में ने धर्म-अधर्म के मूल्य को पहिचाना और यज्ञादि हिसा प्रकाशित कर जनसाधारण में प्रसारित करना चाहिए। काण्ड का परित्याग किया। महावीर ने जन शाषण और जिससे जनसाधारण महावीर के वास्तविक स्वरूप से सामाजिक अन्याय अत्याचारके विरुद्ध आवाज बुलन्द की। परिचित हो सके। दिगम्बर समाज का खास कर्तव्य है समता, दया और अपरिग्रह के सिद्धान्त पर अधिक जोर कि वह निर्वाण शताब्दी की योजना मे भाग ले और उसे दिया। उन्होंने बताया कि पर पीड़ा से भय और वैर की सफल बनाने का प्रयत्न करे । साथ ही ऐसी कोई ठोस अभिवृद्धि होती है और मानसिक सन्तुलन बिगड़ता है। योजना संयोजित करे, जिससे महावीर के सिद्धान्तो का विद्वेष की परम्परा सुदृढ होती है। संसार मे सभी को प्रचार हो सके। प्राशा है दिद्वत् परिपद् इस सम्बन्ध में सुखपूर्वक जीने का अधिकार है, सभी को अपने प्राण प्यारे अपनी कोई ठोस योजना निर्धारित कर कार्य करेगी।