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अनेकान्त
चार युगों का परिवर्तन इकहत्तर बार होता है ऐसा कहा धिकारी के रूप में भगीरथ का नाम दोनों में आता है है। दोनों में चौदह मनुमों के नाम और कार्यों के बारे में यद्यपि सगर से भगीरथ का सम्बन्ध दोनों में भिन्न है। कोई समानता नहीं हैं। वायुपुराण के अनुसार सात मनु प्रतिनारायण-पउमचरिय (म०४ व २०) में हो चुके है और सात प्रागे होंगे जब कि जैन वर्णन के चतुर्थ दुषमासूषमा काल में हुए नौ प्रतिनारायणों का अनुसार चौदह मनु हो चुके हैं।
वर्णन है जिनको विनष्ट करने वाले नो नारायण बताए ५. ऋषभदेव-उमचरिय (प्र. ३) में चौदहवें गए है। ग्यारहवें तीर्थकर श्रेयांस के समय में प्रथम कुलकर नाभिराज के पुत्र प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव का नारायण त्रिपष्ट ने प्रतिनारायण प्रश्वग्रीव को मारा था। वर्णन है । उन्होंने प्रजा को कृषि प्रादि कर्मों का उपदेश
बारहवें तीर्थंकर वासुपूज्य के समय में द्विपृष्ट ने तारक
बारहवें तीर्थक दिया तथा कर्मानुसार क्षत्रिय, वैश्य और शूद्र वर्णों का
को मारा था। तेरहवे तीर्थकर विमल के समय में स्वय भू विभाजन किया। उनके भरत आदि सौ पुत्र हुए। भरत ने मेरक को मारा था। चौदहवें तीर्थंकर अनन्त के समय ने ब्राह्मण वर्ण की स्थापना की। वायुपुराण (प्र० ३३) में परुषोत्तम ने मधुकैटभ को मारा था। पन्द्रहवें तीर्थकर में भी नाभिपुत्र ऋषभ तथा उनके भरतादि सो पुत्रों का धर्म के समय में परुषसिह ने निशभ को मारा था । अठावर्णन है। ब्राह्मणादि वर्गों का विभाजन इनमें ब्रह्मा
इनम ब्रह्मा रहवें तीर्थकर अरनाथ के बाद पुरुषपुण्डरीक ने बलि को
तीन द्वारा त्रेतायुग के प्रारम्भ मे बताया है (अ०८) । ऋषभ
तथा दत्त प्रल्हाद को मारा था। बीसवें तीर्थकर मुनिदेव के पहले के समय में सब लोग सुखी थे, धर्म-अधर्म
सुव्रत के समय लक्ष्मण नारायण ने रावण को तथा का विचार नहीं था, माता-पिता केवल एक बार आयु के बाईसवें तीर्थकर अरिष्टनेमि के समय मे श्रीकृष्ण ने अन्त में युगल पुत्र-कन्या को जन्म देते थे, ऋतुपरिवर्तन
जरासन्ध को मारा था। वायुपुराण में इन नारायणनहीं होता था यह जैन कथाओं का वर्णन वायुपुराण
प्रतिनारायणों में से बहुतों के नाम पाते हैं यद्यपि विस्तृत (१०८) मे कृतयुग के संबंध में पाया जाता है । त्रेतायुग कथाएं नहीं हैं। इसमें (प्र० ४० में) अधोलोक निवासी के प्रारम्भ में मेघवृष्टि, कृषि, कल्पवृक्षो का प्रभाव, घर
दैत्यों के हयग्रीय (जो प्रथम प्रतिनारायण अश्वग्रीव का प्रादि का वर्णन भी यहाँ मिलता है जो जैन कथाओं के
पर्याय प्रतीत होता है), तारक, निशुम्भ, बलि और अनुसार ऋषभदेव के समय की (चौथे दुषमासुषमा काल प्रल्हाद के नाम पाते है। असुरराज के रूप में तारक का के प्रारम्भ की) घटनाएं थी। वायुपुराण (प्र. २३) मे वर्णन भी है (अ०७२) किन्तु यहाँ उनके विनाश का शिव के नवम योगावतार के रूप में भी ऋषभदेव का श्रेय शिवपुत्र स्कन्द को दिया है। मधु और कैटभ इन दो वर्णन है किन्तु यह नवम द्वापर युग की बात कही गई मौत
दैत्यों के विष्णु और जिष्णु द्वारा मारे जाने की कथा है है । अन्य कोई वर्णन न होने से यह तीर्थकर ऋषभ का ।
(म०२४)। विष्णु के अवतार वामन द्वारा बलि को वर्णन है या नही यह सन्दिग्ध है । वायुपुराण (प्र० ३३) पराजित कर पाताल में भेजे जाने की कथा है (म०६७) में ऋषभदेव प्रथम मनु स्वायंभुव के प्रपौत्र नाभि के पुत्र (जैन पराणकथाप्रो में इस से मिलतीजुलती बिष्णकुमार कहे गए है।
मुनि की कथा हरिवंशपुराण मे है)। जैन कथानों मे ६ सगर चक्रवती-पउमचरिय (प्र० ५) में दूसरे बलि के बाद प्रल्हाद का वर्णन है जबकि वायुपुराण चक्रवर्ती सगर तथा उनके साठ हजार पुत्रों की कथा है। (म०६८) में प्रल्हाद के पौत्र रूप में बलि का वर्णन है। वे दूसरे तीर्थकर अजितनाथ के समकालीन बताए गए है। किन्तु इसी के अन्य प्रसंग में (म०६७ में) वाराह कल्प वायुपुराण (म०८८) में वैवस्वत मनु के बाद मड़तीसवीं के बारह युद्धों की गणना में बलि का उल्लेख दूसरे और पीढ़ी में सगर व उनके साठ हजार पुत्रों का वर्णन आता प्रल्हाद का उल्लेख चौथे युद्ध में किया है । रावण का है। दोनों कथानों में सगर माता-पिता के नाम व उनके रामचन्द्र द्वारा विनाश होने की कथा है। (म०७०) पुत्रों के मृत्यु के कारण भिन्न-भिन्न हैं । सगर के उत्तरा. यहां रावण का राज्यकाल ५ करोड़ इकसठ नियुत वर्ष