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भनेकान्त पत्र का इतिहास
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के विद्वान दौलतराम काशलीवाल का परिचय दिया गया कलिका और कवि ठाकुर, भगवतीदास, रूपक काव्य है। महाकवि रइधु वाला लेख भी १०वीं किरण में दिया परम्परा, अपभ्रश भाषा का जंबूस्वामीचरित और कवि गया है।
वीर, कविवर ठकुरसी और उनकी कृतिया, पं० भागचन्द ११वें वर्ष में स्व० मुख्तार श्री जुगलकिशोर जी ही जी, जैन कथा के प्रतीक और प्रतीकवाद, समन्तभद्र के उसके सम्पादक रहे। इस वर्ष की सर्वप्रथम किरण 'सर्वो- समय पर विचार प्रादि अनेक शोधपूर्ण लेख प्रकाशित हुए दय तीर्था' के नाम से प्रकाशित हुई, जिसमे भगवान है। वर्ष ४ से १४वे वर्ष तक मैं अनेकान्त का प्रकाशक महावीर के शासन सर्वोदय तीर्थ पर अनेक लेख लिखे गये रहा और अन्तिम दो वर्षों में सम्पादक भी। इन वर्षों जो महत्त्वपूर्ण है इसके मुख पृष्ठ पर सर्वोदय तीर्थका काल्प
मे अनेकान्त का सब कार्य मुझे ही करना पड़ता था। निक सुन्दर चित्र दिया है। इसी मे उदयगिरि खण्डगिरी
मुझसे जितनी भी सेवा बन पड़ी, उसे लगन के साथ की। का ऐतिहासिक परिचय वाला बाबू छोटेलाल जी कलकत्ता का सचित्र लेख भी प्रकाशित किया गया। इस वर्ष की ३री
१४वे वर्ष के बाद आर्थिक सकोच के कारण भनेकान्त किरण मे छहढाला के कर्ताकवि दौलतराम जी का परि- को ५ वर्ष के लिए बन्द करना पड़ा। इन वर्षों में साहित्य चय दिया गया है । और चौथी-पाचवी किरण में प्रागरा के
की शोध-खोज मे शैथिल्य पा जाना स्वाभाविक ही था। कवि द्यानतराय और भगवतीदास का भी परिचय दिया गया
बाब छोटेलाल जी को उनके अनेक मित्रों ने बार-बार
अनेकान्त के प्रकाशित करने के लिए प्रेरित किया। तब है। बुन्देलखण्ड के कवि देवीदास, हेमराजगोदी का पौर प्रवचन सार का पद्यानुवाद, फतेहपुर के मूर्तिलेख, मोहन
उन्होंने खूब सोच-विचार कर अनेकान्त के कुछ सहायक जोदडो की कला और जैन सस्कृति, महाराज खारवेल
बना कर सन् १९६२ मे अनेकान्त को वै मासिक रूप में
प्रकाशित किया। सम्पादक मण्डल और प्रकाशक भी चमे एक महान् निमतिा आदि अनेक खोजपूर्ण लेख प्रकाशित
रूप में नियुक्त किये गये। डा० ए० एन० उपाध्ये, श्री १२वे वर्ष में अनेकान्त के सम्पादक स्व० मुख्तार सा०
रतनलाल कटारिया, डा. प्रेमसागर और यशपाल जैन । ही रहे। इस वर्ष मे भी अनेकान्त मे महत्त्वपूर्ण सामग्री
और प्रकाशक बाबू प्रेमचन्द जी बी. ए. कश्मीर वाले प्रकाशित की गई है। हिन्दी कवियों मे कविवर भूधरदास
है। १७वें वर्ष में तीन ही सम्पादक रहे। १६ वर्ष का और उनकी विचारधारा पर ही लिखा गया, दशलक्षण
छोटेलाल स्मृति प्रक यशपाल जी और मैंने सम्पादित धर्म पर अच्छे महत्त्व के लेख लिखे गये है। मूलाचार के
किया। इन सभी वर्षों के अनेकान्त का कार्य मुझे अकेले सम्बन्ध में भी विचार किया गया है।
ही उठाना पड़ता है। २१वें वर्ष के जन के अंक से मेरा १३वें और १४वें वर्ष मे अनेकान्त का प्रकाशन मासिक
नाम भी सम्पादक मण्डल में जुड़ गया । २२वे वर्ष के दो
अंक प्रकाशित हो चुके हैं। तीसरा-चौथा पक छप रहा है रूप में ही हुआ है। किन्तु सम्पादक मण्डल में स्व० मुख्तार सा० के अतिरिक्त तीन नाम और शामिल किये
इन सब वर्षों में अनेक ऐतिहासिक, साहित्यिक, दार्शनिक, गये । बाबू छोटेलाल जी कलकत्ता, बा० जयभगवान एह
विचारात्मक, समीक्षात्मक और पुरातत्त्व सम्बन्धी महत्त्ववोकेट पानीपत और परमानन्द शास्त्री। इन दोनों वर्षों में पूर्ण लेख प्रकाशित हुए हैं। जिन सब का परिचय पाठकों अनेक महत्वपूर्ण लेख प्रकाशित हए। 'मद्रास और मयिला. को लख सूची पर से ज्ञात होगा। पुर का जैन पुरातत्त्व' शीर्षक लेख बा. छोटेलाल जी इस सब विवेचन पर से विज्ञ पाठक भली भांति जान का सचित्र प्रकाशित हमा। दीवान ममरचन्द, रामचन्द सकेंगे कि अनेकान्त पत्र जैन संस्कृति के लिए कितना ठोस छाबड़ा, नागकुमारचरित मोर पं. धर्मघर, पं. जयचन्द पौर और उपयोगी कार्य कर रहा है। उसकी सेवाएं किसी उनकी साहित्य सेवा। पं.दीपचन्द जी शाह और उनकी तरह भी भोझल नहीं की जा सकती। रचनाएं, धारा और धारा के जैन विद्वान, महापुराण समाज के गण्यमान व्यक्तियों, विद्वानों, विज्ञ पाठकों,