________________
वायुपुराण और बन कथाएं
१३५
बताया है । यहां तक प्रतिनारायणों के उल्लेख बताए। में अयोध्या के राजा प्रजित के पुत्र वमु के वारे में कहा पांचवे नारायण पुरुषसिंह का नामातर यहां नरसिंह के गया है कि यज्ञ में मज अर्पन करना चाहिए इम वाक्य
। है (प्र. ६७) किन्तु उनके द्वारा मारे गए में मज शब्द का अर्थ बकरा बता कर पशु बलि की प्रथा दैत्य का नाम हिरण्यकशिपु बताया है। सातवें नारायण का उसने समर्थन किया था, फलस्वरूप वह अधोगति को दत्त का विष्णु के अवतार के रूप मे वर्णन है (4०६८) प्राप्त हुआ था। अज शब्द का वास्तविक अर्थ तीन वर्ष किन्तु उनके किसी शत्रु का नाम नहीं है, दत्त (पूरा रूप से अधिक पुराने (प्रकुरित न होने योग्य) घान्यबीज दत्तात्रेय) अवतार दसवें त्रेतायुग का बताया है । पाठवें बताया गया है। यही कथा वायुपुराण (म० ४७) में है, नारायण लक्ष्मण को इसमें महत्त्व नही मिला है, उनके यहाँ वसु के त्रेतायुग के प्रारम्भ के राजा उत्तानपाद का बन्धु रामचन्द्र चौबीसवे त्रेतायुग मे हुए बताए गए है पुत्र बताया है, शेष कथा वैसी ही है, यद्यपि पशुहिंसा के (म०६८)। यही पर अट्ठाइसवे द्वापर युग मे हुए नवें स्पष्ट निषेध को यहां टाला गया है। इतना अवश्य कहा नारायण श्रीकृष्ण का विस्तार से वर्णन है।
गया है कि यज्ञ की अपेक्षा तपस्या विशेष फलदायिनी है। ८. अन्य कथाएं-जैन कथानो मे शलाका पुरुषों के ६. उपसहार-ऊपर पउमचरिय वायुपुराण के मुख्यरूप में गिने गए कथानायकों के उल्लेख अब तक बताए। मुख्य कथासाम्यों का विवरण दिया है। इससे स्पष्ट अब अन्य कुछ कथासाम्यों का निर्देश करते है । पउम- होगा कि इन दोनों में कौनसी परम्परा पूर्ववर्ती है यह चरिय (०२०) मे पाठवे चक्रवर्ती सुभौम के पिता । कहना सरल नही है। ऋषभदेव तथा वसु की कथाएं कार्तवीर्य बताए है। कार्तवीर्य का विनाश परशुराम द्वारा स्पष्टतः जैन परम्परा से ली गई हैं। अन्य कथानों में तथा परशुराम का विनाश सुभौम द्वारा बताया है । वायु- वायुपुराण में अद्भुत वर्णनों का बाहुल्य है कि जबकि पुराण में (म०६४) राजा यदु के वशनों की दसवीं पीढ़ी पउमचरिय तथा उसके बाद के जैन पुराणों में अधिकांश में कार्वतीर्थ अर्जुन का वर्णन है जिसे परशुराम ने मारा वर्णन मानवीय घरातल के है। वायुपुराण मे कथानों के था, यहाँ सुभौम की कोई चर्चा नही है । एक अन्य प्रसग कालानुक्रम में कई स्थानों पर उलझनें प्रतीत होती हैं मे (म०६८) परशुराम उन्नीसवें त्रेतायुग के अवतार जबकि पउमचरिय तथा उसके अनुवर्ती साहित्य की बताए है। कार्तवीर्य के सहस्र बन्धुओं द्वारा समुद्र को कथानों का क्रम अपेक्षाकृत सुलझा हुमा है। क्षुभित करने तथा रावण को पराजय करने की कथा है हम (अ०६४)। पउमचरिय (अ० १०) में इससे मिलती- भूमिका मे बहुत अन्तर है-वायुपुराण ईश्वर की प्रेरणा जुलती कथा मे राजा का नाम सहस्रकिरण बताया है। से जगत की सृष्टि और प्रलय को आधारभूत मानता है, तथा उसकी जलक्रीड़ा में नर्मदा के जल के रोके जाने का देवों और ऋषियों के कार्यकलापों के वर्णन मे भी जैन वर्णन है, रुके हुए नर्भदाजल के पुन: प्रवाहित होने पर परम्परा से वह बहुत अधिक भिन्न है । तथापि उपर्युक्त रावण की पूजा में विघ्न प्राने की तथा फलस्वरूप रावण विववरण से स्पष्ट होगा कि उनमें समानता के स्थल और सहस्रकिरण के युद्ध होने की भी चर्चा है। किन्तु भी है। इसमें सहस्रकिरण की पराजय व तदनन्तर प्रवजित होने सभव हुआ तो वैदिक परम्परा के अन्य पुराणों की की घटना वायुपुराण से भिन्न है । दूसरा महत्त्वपूर्ण कथा- कथाओं की समानता का विवरण देने का भी हम प्रयत्न साम्य राजा वसु की कथा का है। पउमचरिय (अ०११) करेगे।
सुभाषित-सुख स्वाधीन जु परिहरपो, विषयनि पर अनुराग ।
कमल सरोवर छोरि ज्यों, घट जल पोर्व काग। सेये विषय अनादित, तप्ति न कह सिराय। ज्यों जल के सरितापति, इंधन सिलिन प्रधाय ।