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अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व शान्ति किस प्रकार प्राप्त हो सकती है ?
शान्तोलाल वनमाली शेठ
झिगोरक्षक मास्को (रूस) में होने वाले सर्व धर्म सम्मेलन में जनसमाज की ओर से शान्तीलाल बनमाली शेठ ने उसमें भाग लिया, वहाँ मापने जो भाषण दिया उसे यहाँ ज्यों का त्यों नीचे दिया जाता है। -सम्पादक]
सबसे पहले मै इस सम्मेलन के आयोजकों को हार्दिक में, इस पवित्र शान्ति-यज्ञ में सम्मिलित होने में मैं गौरव बधाई देना चाहता है कि जिन्होंने मानवतावादी मार्क्स अनुभव करता है। टॉल्सटॉय, और लेनिन की कर्मभूमि-इस सोवियत सघ- यह बडे ही सौभाग्य की बात है कि हम इस शान्तिमें मानवता का मूल्यांकन करने का हमें मौका दिया है। यज्ञ का मगलाचरण ऐसे शभावसर पर कर रहे हैं जब कि
मुझे इस बात का गौरव है कि प्राज मै ऐसे महान् अहिंसक समाज-क्रांति के अग्रदत भ० महावीर की २५वी प्राचीन जैनधर्म का प्रतिनिधित्व करने जा रहा हूँ जिस निर्माताली हिंसामान प्रयोगवीर महात्मा गांधी धर्म के प्ररूपक भगवान महावीर का प्राणतत्त्व एवं जीवन
की जन्म-शताब्दी एवं मानवतावादी महान नेता लेनिन मंत्र ही 'समता सर्वभूतेषु,-सर्वभूतों के प्रति साम्यभाव
की शताब्दी मनाने जा रहे है। विश्वशान्ति के पुरस्कर्ता रहा है और जिसने सह-अस्तित्व, परस्पर सहयोग द्वारा
इन महापुरुषों के जीवन में से पवित्र प्रेरणा पाकर मानवविश्व को शान्ति एवं मंत्री का जीवन-संदेश दिया है।
समाज को एक विश्व-कुटुम्ब के रूप मे, प्रखण्ड बनाने का भ० महावीर अहिंसा मूलक साम्यवाद-सिद्धान्त के प्रमुख
सत्संकल्प करें यही उनके प्रति सच्ची श्रद्धाजलि होगी। उद्घोषक, प्रबल समर्थक, प्ररूपक एवं प्रहरी थे। आज जिस सहअस्तित्व एवं शान्ति की पवित्र भावना
विश्व के सभी राष्ट्र शान्ति एव मैत्री चाहते है। से यह सम्मेलन आयोजित किया गया है वही विश्वशान्ति
क्योकि प्रत्येक राष्ट्र, जाति एवं व्यक्ति हिंसा के दुष्परिएव विश्वमैत्री स्थापित करने के महान उद्देश्य से भारतीय णामों से भयाक्रांत हैं। हिंसक क्राति का युग समाप्त हो समन्वय-संस्कृति के प्रखर स्वरवाहक, तेजस्वी जैन संत चुका है। हिंसा, वैमनस्य, विद्वेष के स्थान पर प्राज मुनिश्री सुशीलकुमारजी म० की प्रेरणा से भारत मे बम्बई, अहिंसा एवं विज्ञान के समन्वय का, समता तथा शान्ति दिल्ली, कलकत्ता मादि स्थानों पर तीन विश्व-धर्म-सम्मे- का युग पा रहा है। इस पानेवाले अहिंसा-युग का यह लन सफलतापूर्वक सम्पन्न हो चुके है जिसमे दिल्ली- आह्वान है कि-'विषमता एवं विसंवादिता से दूर रहकर, सम्मेलन मे तो आपके यहाँ के तीन महानुभाव प्रतिनिधियो समता-शान्ति तथा श्रमता का प्राधार बनाकर शान्तिपूर्ण ने भी भाग लिया था, यह सतोष का विषय है। मुनिश्री सह-अस्तित्व एवं पारस्परिक सहयोग-द्वारा समग्र विश्व मे सुशीलकुमारजी म. अपनी परम्परा की मर्यादानुसार यहाँ शान्ति एवं मैत्री का मधुर वातावरण पैदा करें।' साक्षात् उपस्थित नहीं हो सके हैं लेकिन विश्वधर्म सम्मे- वर्तमान युग में दो प्रयोग चल रहे है-एक अणु का, लन द्वारा विश्व में शान्ति एवं मैत्री स्थापित हो सकती अस्त्र का एवं युद्ध का और दूसरा सह अस्तित्व, पारस्पहै ऐसा उनका विश्वास है। उन्होंने इस सम्मेलन की रिक सहयोग एवं शान्ति का। एक भौतिक, है. दूसरा सफलता के लिए अपनी शुभ कामनाएं प्रेषित की हैं और प्राध्यात्मिक, एक मारक है, दूसरा तारक, एक मृत्यु है, अागामी फरवरी १९७० में दिल्ली में होने वाले चौथे दूसरा जीवन, एक विष है, दूसरा अमृत । विश्वधर्म सम्मेलन में सम्मिलित होने के लिए सप्रेम सह-अस्तित्व एवं पारस्परिक सहयोग का यह मामंत्रण भेजा है। माज उन्हीं के एक प्रतिनिधि के रूप नारा है