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तीर्थडुरों की प्राचीनता
कस्तूरबन जैन 'सुमन' एम. ए. मध्यप्रदेश में प्राप्त जैन अभिलेखों में प्रथम जन भी अजितनाथ का स्मरण किया गया है। तृतीय तीर्थङ्कर तीर्थङ्कर के दो नाम मिलते हैं। चन्देल शासन कालीन, सभवनाथ-प्रतिमा पर उत्कीर्ण खजुराहो से प्राप्त अभिलेख खजुराहो से प्राप्त सं० ११४२ के एक अभिलेख में आदि- प्रतिमा की प्राचीनता म० १२१५ प्रगट करता है। ऊन से नाथ की प्रतिमा की प्रतिष्ठा कराये जाने का उल्लेख है। प्राप्त सं०१२५८ का अभिलेख भी संभवनाथ प्रतिमा की इससे प्रथम प्रादिनाथ नाम की जानकारी मिलती है। प्राचीनता का बोध कराता है। पांचवे तीर्थङ्कर सुमतिनाथ द्वितीय नाम ऋषभदेव था । दूबकुण्ड प्रशस्ति में मंगलाचरण की प्राचीनतम तिथि मं० १३३१ अजयगढ मे प्राप्तके रूप में सर्व प्रथम ऋषभदेव का ही स्मरण किया गया चक्रवाक चिन्ह युक्त चरण पर अङ्कित अभिलेख में मिली है।'महार(टीकमगढ़) से प्राप्त अभिलेख में भी यही नाम है। मिलता है। पूर्वोल्लेख में दूबकुण्ड प्रशस्ति से यह प्रमा- छठवे तीर्थङ्कर पद्मप्रभु का सकेतात्मक उल्लेख “प्रों णित होता है कि आदिनाथ या ऋषभदेव ११ वी शती के नमः पद्यनाथाय" रूप में स० ११५० के ग्वालियर अभि. भारम्भ में सर्वप्रमुख तीर्थकर स्वीकार किए गए थे। लेख में मिला है। अभिलेख का लेखक जैन होने के कारण प्रशस्ति में आदिनाथ को सर्वप्रथम स्थान मिलने का अर्थ पद्मनाथ-पद्मप्रभु तीर्थङ्कर ही ज्ञात होते है । पाठवे तीर्थही, उनका तीर्थकुरों में सर्व प्रथम तीर्थङ्कर होना प्रमाणित र चन्द्रप्रभु सम्बन्धी उनके चरण-चिन्ह सहित दो अभिहोता है । इस प्रकार क्या जैन-जनेतर साहित्य और क्या लेख-एक दूबकुण्ड से" और द्वितीय होशगाबाद" से प्राप्त पुरातत्व सभी दृष्टियों से ऋषभदेव प्रथम तीर्थकर ज्ञात
५. डॉ. राधाकृष्णन् इण्डियन फिलासफी : जि०१, १० होते हैं । अन्य तीर्थङ्करों की प्राचीनता सम्बन्धी उल्लेख
२८७। भी म०प्र० से प्राप्त जैन अभिलेखों में दृष्टव्य हैं।
६. एपि० इं० जि० १, पृ० १५३ । द्वितीय जैन तीर्थधर अजितनाथ की प्रतिमा का ७.५० परमानंद शास्त्री, अनेकान्त : वर्ष १२, पृ. उल्लेख खजुराहो के जैन अभिलेख में मिलता है। यजुर्वेद में १६२।
८. डॉ. ज्योतिप्रसाद जैन, अनेकान्त : वर्ष १३ कि० ४, १. कनिंघम रिपोर्ट जि. २ पृ० ४६१ ।
पृ०६८-६९ । और
६. इण्डियन एन्टीक्वेरी जि० १५ पृ० ३३-४६ । एवं सं० ११४२ श्री प्रादिनाथ प्रतिष्ठाकारक श्रेष्ठी पूर्णचन्द्रनाहर : जैन लेख संग्रह भाग २, पृ०८५-६२ वीवनशाह भार्या सेठानी पद्मावती"
सख्या १४२६ । अनेकान्त, बाबू छोटेलाल स्मृति अङ्क पृ० ५७ १०. जाडचं सस्वदखंडितक्षयमपिक्षीणाखिलोपक्षयं २. एपि. ई. जि. २ पृ० २३२-२४०। मभिः साक्षादीक्षितमक्षिभिर्दधदपि प्रौढं कलंक तथा पंक्ति ।
चिह्नत्वाद्यदुपांतमाप्यसततं (जातस्तथा) नंदकृत् ३. सं० १२३७ मार्ग सुदी ३ शुक्रे......श्री ऋषभनाथ चन्द्रः सर्वजनस्य पातु विपदश्चन्द्रप्रभोर्हन्स नः ।।
प्रणमन्ति नित्यं महार अभिलेख सं० १२३७, मनु- एपि. इंजि .२ पृ. २३२-२४०, दूबकुण्ड अभिलेख क्रमाङ्क।
पंक्ति०४-६। ४. कनिषम रिपोर्ट २१, पृ० ६६ ।
११. नागपुर संग्रहालय में संग्रहीत ।