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अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग व शान्ति किस प्रकार प्राप्त हो सकती है
विश्वशांति व मंत्री को चिरस्थायी बनाने की ओर एक ठोस कदम है।
यदि हम वास्तव में राष्ट्र-राष्ट्र के बीच अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पारस्परिक सहयोग एव सहअस्तित्व द्वारा विश्वशान्ति स्थापित करना चाहते हैं तो निम्नलिखित शान्तिसूत्रों को मूर्तस्वरूप देना मावश्यक होगा :१. अखण्डता :
एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र की सीमा का यथासंभव अतिक्रमण न करे। उसकी स्वतन्त्रता एव प्रभुसत्ता पर अाक्रमण न करे । उस पर इस प्रकार का दबाव न डाले, जिससे उसकी अखण्डता पर संकट उपस्थित हो। २. प्रभुसत्ता : प्रत्येक राष्ट्र की अपनी प्रभुसत्ता है। उसकी इच्छा के विरुद्ध स्वतन्त्रता में किसी प्रकार की बाधा-बाहर से नहीं पानी चाहिए। ३. अहस्तक्षेप : किसी देश के प्रान्तरिक या बाह्य सम्बन्धों में किसी
प्रकार का हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए । ४. सह-अस्तित्व:
अपने से भिन्न सिद्धान्तों और मान्यताओं के कारण किसी देश का अस्तित्व समाप्त करके उस पर अपने सिद्धान्त और व्यवस्था लादने का प्रयत्न न किया जाय। सबको साथ जीने का, सम्मानपूर्वक जीवित
रहने का अधिकार है। ५. पारस्परिक सहयोग:
एक दूसरे के राष्ट्र-विकास में सहयोग-सहकार की भावना रखें । एक के विकास में सबका विकास और एक के विनाश में सबका विनाश है। ये पांच शान्ति-सूत्र हैं जो आज से सहस्रों वर्ष पूर्व भारतीय संस्कृति, श्रमण-संस्कृति एवं गणतन्त्र प्रणाली के प्रयोग-व्यवहार में लाए गए हैं और शान्ति और मैत्री स्थापित करने में सफल सिद्ध हुए हैं। यदि उक्त पांच शान्तिसूत्रों को सह-अस्तित्व में प्रग मान लिए जाते हैं तो विश्व की सभी उलझी हुई गुत्थियां सहज सुलझ सकती हैं।
भाज इन पांच शान्ति-सूत्रों को पुनः प्रयोग व्यवहार में लाना जरूरी है। समय की भी यही मांग है। समग्र विश्व में शान्ति एवं मैत्रीमय वातावरण पैदा करने के लिए निम्नलिखित प्रस्ताव पारित किए
जाएं :(१) शान्तिपूर्ण सह-अस्तित्व एवं अन्तर्राष्ट्रीय पारस्परिक
सहयोग स्थापित करने के लिए एक 'विश्व-नागरिकसघ' का निर्माण किया जाय जो विश्व की जनता को प्रेमसूत्र से बांध सके और विश्वात्मक्य के मादर्श को मूर्त कर सके। विश्व के प्रतिष्ठित व्यक्तियों को हर जगह जाने की स्वतन्त्रता हो। पार-पत्र का सीमा
बन्धन न हो। २) राजनैतिक एकता के लिए सयुक्त राष्ट्र-संघ एवं
सांस्कृतिक एवं शैक्षणिक एकता लिए 'युनेस्को' जैसी महान् संस्थाएं स्थापित की गई है वैसे ही विश्व में शाति, मैत्री, सहृदयता, मानवता का विशुद्ध वातावरण पैदा करने के लिए एक विश्वधर्म-संसद' जैसी
आध्यात्मिक संस्था स्थापित हो। इस संस्था की विश्व भर में शाखाएं हों और उसका एक प्रमुख केन्द्र भारत में रहे। इस सस्था में सभी धर्मों के तुलनात्मक अध्ययन की व्यवस्था हो जिससे विश्व में सर्व धर्म-समन्वय स्थापित करने में प्रेरणाबल मिल
सके। (३) विश्व में 'अभय' का वातावरण पैदा करने के लिए
निःशस्त्रीकरण के सिद्धान्त को मान्यता दी जाय एवं अणु-अस्त्र के निर्माण पर नियंत्रण करके माक्रमण प्रत्याक्रमण की भावना को ही समाप्त की जाय । प्राण्विक शक्तियों का रचनात्मक कार्यों में सदुपयोग
किया जाय। (४) अहिंसा की भावना को विश्व-व्यापक बनाने के लिए
प्रमुख स्थानों पर 'अहिंसा-शोधपीठ' स्थापित किये जाय। जहां पर मांसाहार के स्थान पर सात्विक शाकाहार का प्रचार करने के लिए महिंसा-भावना के विस्तार के साधनों पर अनुसंधान किया जाय । मानव-मानव के बीच जैसी सहृदयता है वैसी सहृदयता प्राणीमात्र-मूक पशु-पक्षी तक विस्तीर्ण हो।