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लश्कर में मेरे पांच दिन
परमानन्द शास्त्री
मैं लश्कर-ग्वालियर में जून महीने के शुरू मे वहाँ दिगम्बर सम्प्रदाय के है । एक लेख सं० १३१६ का भीमकी प्रगतिशील संस्था नवयुक मण्डल के निमन्त्रण पर गया पुर (नरवर) का है, जो ६६ पद्यों मे उत्कीर्ण है और था। सेठ मिश्रीलाल जी पाटनी के पास ठहरा, वे बडे भद्र जिसमे यज्वपाल के सामन्त जैसिंह द्वारा जैन मन्दिर बनपरिणामी है, और लगन से काम करते है। उनकी धार्मिक वाने और पौरपट्टान्वयी नागदेव द्वारा प्रतिष्ठा कराने का लगन सराहनीय है । वे नियम से नये मन्दिर मे प्रति दिन उल्लेख है । वह लेख भी मूल शिला परसे नोट करके लाया पूजन करते है । संस्था द्वारा निर्मापित 'ग्वालियर निर्देशि- हूँ उसे अनेकान्त के अगले अकमें दिया जावेगा । दूसरी एक का भी देखी, जिसे उन्होंने बड़े भारी परिश्रम से तय्यार प्रशस्ति है जो एक शिला पर उत्कीर्ण है उसे नोट करने का किया है, उसके लिए कुछ उपयोगी सामग्री वतलाई, और समय नहीं मिला । इस अंकमें कुछ मति लेख दिये जाते है।
. और शेष अगले अंक मे । कुछ सुझाव दिये । नवयुवकों मे स्वाध्याय करने की प्रेरणा की। मुझे लगा कि नवयुवक यदि इस तरह से परिश्रम कुछ मूर्ति-यत्र-लेख नयामन्दिर लश्कर करते रहे तो वहाँ की समाज की अच्छी प्रगति हो सकती १. पार्श्वनाथ मूल नायक पाषाण पीला पद्मासन ढाई है । ग्वालियर निर्देशिका से ज्ञात होता है कि ग्वालियर मे फुट, ऊंची-चौडाई सवा दो फुट । सं० १५४० वर्षे इस समय जैनियों की जनसंख्या सात हजार है। लश्कर भट्टारक जिनचन्द्र राजाशिवसिंह जीवराज पापडीवाल मे २२-२३ जनमन्दिर है।
प्रतिष्ठा कारापिता। ग्वालियर का भट्टारकीय शास्त्र भण्डार असें से बन्द २ चौवीसी धातु ॐ०१। फुट चौ. ६ इंच । प्रतिष्ठा सं० पड़ा है। वहाँ की समाज को चाहिए कि शास्त्र भडार को १४७६ वर्षे वैशाख सुदी ३ शुक्रवासरे श्रीगणपतिदेवसम्हालने का यत्न करे उसे खुलवाए और उसकी विधि- राज्ये श्री मूलसघे...भट्टारक शुभचन्द्रदेवा मंडलाचार्य वत सूची बनाकर प्रकाशित करें, जिससे जनता को अज्ञात
पं० भगवत तत्पुत्र संघवी खेमा भार्या खेमादे जिनकृतियों का पता चल सके ।
बिम्ब प्रतिष्ठा कारापितम् ।। मैने ग्वालियर और लश्कर के दो-तीन मन्दिरों के ३ चौबीसी धातु साइज १ फुट ऊँची ६ इंच चौड़ी। मूर्तिलेख लिए है और किले में अग्रवालों द्वारा उत्कीणित सं० १६४७ पासाढ़ सुदी ५ प्रतिष्ठा गढ़ नरवर श्री मूर्तियों का भी अवलोकन किया, वे विशाल मूर्तियां जो काष्ठासघे भट्टारक श्री शुभचन्द्रदेवा तत्पट्टे भट्टारक श्री खडित की गई है उनकी मरम्मत होनी चाहिए। मूर्तियों यशःकीति प्राम्नाये श्रीमालज्ञाति वसुदेव भार्या गोदेवी की खुदाई का कार्य डूगरसिंह और कीतिसिंह के राज्य -तत्भार्या डरूको तथा पुत्र चतुरधा रविचन्द्र तत्भार्या काल में ३३ वर्ष पर्यन्त चला। किले में छोटी-बड़ी एक रतोदेवी तत्पुत्र टोडरमल, महेशदास तत्र टोडरमल देवमती सहस्र से अधिक मूर्तियों उत्कीर्ण की गई है। मूर्तियों का तत्पुत्री खड़गसेन ब्रह्म गाइ सेनऊ महेशदास भायी कपूरदेवी पाषाण करने लगा है, कई लेख भर गए हैं, जो पढ़ने में एतेपा पाम्नाये मध्ये चतुरघा हेमदासो नित्यं प्रणमति । नहीं पाते । यदि उनकी मरम्रत न हुई तो इस महत्वपूर्ण चौसठि ऋषि यन्त्र । सामग्री का विनाश अवश्यम्भावी है।
सं० १७२२ वर्षे अगहन सुदी १ सोमे श्री मूलसंधे ग्वालियर का म्यूजियम भी देखा, उसमें दो लेख बलात्कारगणे सरस्वती गच्छे कदकदाचार्यान्वये श्री भ०