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अनेकान्त
तुगलक के राज्य काल मे धनपाल कविकृत भविष्य दत्त इस जाति मे अनेक धन सम्पन्न, विद्वान कोषाध्यक्ष और पचमी कथा की प्रतिलिपि कराई थी।
दीवान जैसे राज्यकीय उच्च पदों पर काम करने वाले संवत् १४९४ सन् १४३७ में दिल्ली के बादशाह धर्मनिष्ठ व्यक्ति हुए है। और वर्तमान मे भी है । अकेले फिरोजशाह तुगलक द्वारा बसाये हुए फिरोजाबादसे दिल्ली जयपुर मे २५-२६ दीवान हुए है। जिन्होंने राज्य की मे आकर साहू खेतल ने अपनी धर्मपत्नी के श्रुतपचमी व्रत सदा रक्षा की है। इन दीवानो मे बालचन्द छावड़ा, के उद्यापन के लिए मूलाचार की प्रतिलिपि कराकर भ० रायचन्द्र' अमरचन्द दीवान अधिक ख्याति प्राप्त है। धर्मकीर्ति को अर्पित की थी। उनके दिवगत होने पर वह अमरचन्द दीवान की महत्ता का लोक में विशेष आदर ग्रंथ उनके शिष्य मलयकीर्ति को समर्पित किया गया। है। अमरचन्द दीवान की सुजनता, उदारता और धर्म
भटानियाकोल (अलीगढ़) वासी साहू पारस के पुत्र तत्परता की जितनी अधिक तारीफ की जाय वह थोड़ी साहू टोडरमल अग्रवाल ने मथुरा मे ५१४ स्तूपों का जीर्णो- है। उनका जयपुर की रक्षा मे प्रमुख हाथ है । उसके लिए द्धार करा कर प्रतिष्ठा कराई थी। और आगरा मे जैन उन्होंने अपनी देह तक का उत्सर्ग कर दिया। ऐसे परोपकारी मन्दिर का निर्माण कराया था। साथ ही वि० स० और धर्मात्मा दीवान का कौन स्मरण नही करेगा। इनके १६३२ मे पाडे राजमल से जबूस्वामी चरित का निर्माण द्वारा निर्मित मन्दिर और मूर्तियां, जैन ग्रन्थो का निर्माण कराया था। उनके पुत्र ऋपभदास ने ज्ञानार्णव की सस्कृत कार्य, और प्रतिलिपि कार्य, महत्वपूर्ण है। वर्तमान में भी टीका बनवाई थी। साहू टोडर अकबर की शाही टकसाल
इनकी सम्पन्नता श्लाघनीय है। खडेलवालो द्वारा प्रतिका अध्यक्ष और कृष्णामंगल चौधरी का मन्त्री था। बड़ा।
प्ठित मूर्ति लेख स० १२०७, १२२३ और १२३७ के धर्मात्मा, उदार और प्रकृति का सज्जन पुरुष था। अग्र
देखने में आए है'। खडेलवाल समाज के अनेक विद्वानों वालों ने ग्वालियर किले की सुन्दर मतियों का निर्माण का परिचय भी लेखक द्वारा लिखा गया है जो अनेकान्त मे कराया था और कवि रइधू से अनेक ग्रन्थों की रचना प्रकाशित है, पं० टोडरमलजी, दीपचन्द जी शाह, दौलतकराई थी। इसी तरह दिल्ली के राजा हरसुखराय सुगन रामजी, जयचन्द जी, सदासुखदास जी बुधजन जी (वधीचन्द्र ने अनेक जैन मन्दिरों का निर्माण कराया था। चंद जी) आदि का परिचय पढने योग्य है। इनके द्वारा राजा हरसुखराय भरतपुर राज्य के कोसलर भी थे। प्रतिष्ठित मदिर, मूर्तिया और शास्त्रभडार आदि इनकी इनके द्वारा निर्मित मन्दिर-मतियाँ और ग्रन्थों का निर्माण, महानता के निदर्शक और गौरव के प्रतीक है। शास्त्रों का निर्माण तथा प्रतिलेखन कार्य भी महत्व- १. देखो, अनेकान्त वर्ष १३ कि० १० मे दीवान रामचद पूर्ण है।
छावड़ा वाला लेख खडलवाल-यह उपजाति भा चारासा उपजातिया २. देखो, दीवान अमरचन्द, अनेकान्त वर्ष १३ कि०८ में से एक है। इस जाति का निकास स्थान 'खडेला है पृ० १९८१ जो राजस्थान में एक छोटासा स्थान है, जो कभी अच्छा ३. संवत् १२०७ । माघ वदी ८ खडेलवालान्वये समृद्ध रहा है। इस जाति के चौरासी गोत्र बतलाये जाते
साहु माहवस्तत्सुत वाल प्रसन भार्या सावित्री तत्सुत है। जिनमे छावड़ा, कासलीवाल, वाकलीवाल, लुहाड्या, बीकऊ नित्य प्रणमन्ति । पाण्डया, पहाडया, सोनी, गोधा, भौसा, काला और खडेलवालान्वये साहु धामदेव भार्या पल्हा पुत्र साल भार्या पाटनी आदि है। इन गोत्रों की कल्पना ग्राम-नगर और
वस्त्रा स० १२२३ वैसाख सुदी ८ प्रणमन्ति नित्यम् । व्यवसाय प्रादि के नाम पर हुई है। इसमे भी दो धर्मों के
संवत् १२३७ अगहन सुदी ३ शुक्ले खडिल्लवालान्वये मानने वाले हैं। जैन और वैष्णव । यह जाति सम्पन्न साहु वाल्हल भार्या वस्ता सुत लाखना विघ्ननाशाय और व्यापार में कुशल रही है । आज व्यापार आदि की प्रणमन्तिनित्यम् । अनेकान्त में प्रकाशित पाहार दष्टि से ही यह भारत के सभी नगरों में पाये जाते है। के मूर्तिलेख वर्ष १०