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जैन समाज को कुछ उपजातियाँ
गोलापूर्व-जैन समाज की ८४ उपजातियो मे से इस जाति के द्वारा प्रतिष्ठित अनेक मूर्तियां देखने में यह भी एक सम्पन्न जाति रही है। इस जाति का वर्तमान पाती है। अनेक विद्वान तथा श्रीमान पुरुष भी इसमे होते में अधिकतर निवास बंदेल खण्ड मे पाया जाता है। साथ रहते है और कुछ वर्तमान भी है। अनेक ग्रथकार और ही सागर जिला, दमोह, छतरपुर पन्ना, सतना, रीवा कवि भी हुए है। इसके निकास का स्थान गोल्नागढ़ है। पाहार, महोबा, नावई धुवेला. जबलपुर, शिवपुरी और गोलाराडान्वय में खरोमा एक जाति है जिसका गोत्र ग्वालियर के आस-पास के स्थानो में निवास रहा है। कुलहा कहा जाता है। इनके गोत्रों की संख्या कितनी १२वी शताब्दी और १३वी के मूर्ति लेखो से इसकी समृद्धि और उनके क्या-क्या नाम है यह मेरे जानने मे नही का अनुमान किया जा सकता है। इस जाति का निकास पाया। एक यत्र लेख में 'सेठि' गोत्र मिलता है जिससे गोत्र गोल्लागढ (गोला कोट) की पूर्व दिशा से हुआ है। मान्यता का स्पष्ट प्राभास होता है । उसकी पूर्व दिशा में रहने वाले गोलापूर्व कहलाते है। कवि रइधू ने सम्यक्त्व कौमुदी या सावयचरिउ की यह जाति किसी समय इक्ष्वाकु वशी क्षत्रिय थी। किन्तु प्रशस्ति मे ग्वालियरवासी साहू सेऊ के पुत्र सघाधिप व्यापार प्रादि करने के कारण वणिको (वानियो) मे कुसराज की प्रेरणा से उक्त ग्रथ बनाया था और एक इसकी गणना होने लगी। ग्वालियर के पास कितने ही जिन मन्दिर का भी निर्माण कराया था जो ध्वजा पंक्तियों गोलापूर्व विद्वानोने अन्य रचना और ग्रथ प्रतिलिपि की है। से अलकृत था। ग्वालियर के अतर्गत श्योपुर (शिवपुरी) में कवि धनराज गोलसिंघारे (गोल शृगार)-गोल्लागढ़ में सामूहिक गोलापूर्व ने स० १६६४ से कुछ ही समय पूर्व 'भव्यानन्द रूपसे निवास करने वालोमे वे उसके सिंगार कहे जाते है। पचासिका' (भकामर का भापा पद्यानुवाद) किया था यदि शृगार शब्द का ठीक अर्थ सहज अभिप्राय को व्यक्त और उनके पितृव्य जिनदास के पुत्र खड्गसेन (ग्रसिसेन) करना ठीक मा
करना ठीक माना जाय तो वे उसके भूपण कहला सकते है। ने पन्द्रह-पन्द्रह पद्यों की एक सस्कृत जयमाला बनाई थी। इसकी एक जीर्ण-शीर्ण सचित्र प्रति श्वे० मुनि कान्ति सागर
इसके उदय अभ्युदय और ह्रास आदि का कोई इतिके पास है। यह टीका पाडे हेमराज की टीका से पूर्ववर्ती है। १. सं० १४७४ माघसदी १३ गुरी मूलसधै गोलाराडामुति लेखो और मन्दिरों की विशालता से गोलापुर्वान्वय
न्वये सा० लम्पू पुत्र नरसिंह इद यत्रं प्रतिष्ठापित । गौरवान्वित है। वर्तमान में भी उसके अनेक शिखर बन्द
(अनेकान्त वर्ष १८ कि०६१० २६४) मन्दिर मौजूद हैं । धुलेवा के सं० ११६६ के मूर्ति लेख तो
स० १६५८ मूलसघे भ० ललितकीर्ति उपदेशात् मस्कृत पद्यो मे अकित है। शेष सब गद्य मे पाये जाते है।
गोलालारे सा० रूपनुभार्या रुक्मनी पुत्र सा० चतुर्भुज अनेक सम्पन्न परिवार और अच्छे विद्वान और ग्रथकार
भार्या हीरा पुत्र भाउने हरिवंस मनोहर नित्यं इस जाति मे पाये जाते है। उन पर से इस जाति की प्रणमन्ति । (अनेकान्त वर्ष १८ कि० ६१० २६३) समृद्धि का मूल्याकन किया जा सकता है। गोलापून्विय के
स० १७२६ माघसुदी १३ रवी पद्मनन्दि सकलकीर्ति स० ११६६, १२०२, १२०७, १२१३ और १२३७ अादि
उपदेशात् गोलालारे सेठि गोत्र सिलच्छे भा० कपूरा के अनेक लेख है: जिन्हे लेख वृद्धि के भयसे छोड़ा जाता है।
पुत्र खांडे राय भा० वसन्ती पुत्र ३ जेठा पुत्र विसुनदास इसमें अनेक ग्रथकार विद्वान और कवि है । वर्तमान में भी
भा० लालमती द्वि० पुत्र श्रीराम भा० सुवती तृतीय अनेक विद्वान डा०, प्राचार्य और शास्त्री व्याख्याता और
पुत्र भगवानदासेन यत्र प्रतिष्ठितं वरना ग्रामे । सुलेखक विद्वान है।
(अनेकान्त वर्ष १८ कि. ६ पृ० २६४) गोलालारे-गोल्लागढ़ के समीप रहने वाले गोला- २. जेण कराविउ जिणहरु ससेउ, घयवड पंतिहि रहलारे कहलाते हैं। यह उपजाति यद्यपि संख्या में अल्प सूरते। रही है। परन्तु फिर भी अपना विकास करती रही है।
-अनेकान्त वर्ष १७ कि० १ पृ. १३